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३८२] त्रियष्टि शलाका पुरुष चरित्रः पर्व १. सर्ग ५.
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तेलकी रक्षा करते हैं। कारण, तेजही उनका जीवन होना है। आपके लिए अपना राज्य क्या कम था कि, आपने चावंड पृथ्वीको जीता ? यह निर्फ तन लिए था। जिस तरह एक बार शील रहित बनी हुई सनी भी असनिहीं कहलाती है, इसी तरह एक जगह नाश पाया हुआ तेज सभी जगह नष्ट हुधा ही समझा जाता है। गृहत्यांम द्रव्य समी माझ्याको समान दिया जाता है; मगर तेजको ग्रहण करनेवाले भाईकी दूसरे भाई कभी उपेक्षा नहीं करने । सारे भरतवंडको जीतने के बाद यहाँ श्रापका पराजय होना, समुद्रको पार करके गड्ढे में हवनके समान होगा । कहीं यह मुना या देखा गया है कि, कोई राजा चक्रवर्तीका प्रतिस्पर्दी होकर राज्य करता है ? हे प्रभो ! अविनयीके लिए भ्रातृस्नेहका संबंध रखना एक हायसे ताली बजाना है। वेश्याओंके समान स्तहरहित बाहुवली पर भरत राना स्नेह रखते हैं, यह बात कहनेस आप हमें मल रोक, मगर 'भव शत्रुओंको जीतने के बादट्टी में अंदर पाऊँगा' इस निश्चयके साथ नगरके बाहर खड़े हुए चक्रको श्राप कैसे समझाएँग ? भाईके वहान शत्रुमावसे रहनेवाले बाहुबलीकी उपना करना किसी तरहसे भी उचित नहीं है। इस संबंध श्राप दूसरे मंत्रियोंसे भी पूछिए।" (२३६-२५२)
मुपेणकी बातें सुनने के बाद महाराजने दूसरे मंत्रियोंकी नरफ देखा इससे वाचन्यनिसमान मुख्य मंत्री बोला, "सेनापनिने जो कुछ कहा है वह योन्य है और ऐसा कदनका साहस किसी दूसरेमें कहाँ है ? जो पराक्रममें और प्रयत्नमें भीक होते है वही स्वामीकं तेलकी उपेक्षा करते हैं। स्वामी अपने तेजक