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भरत-बाहुबलीका वृत्तांत
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तुम्हारा अपमान किया है कि जिससे तुम जल्दी लौट आए हो ? मेरे बलवान भाईकी यह वीरवृत्ति दूषित होते हुए भी उसके योग्यही है।" (२११-२१२)
सुवेग बोला, "हे देव ! आपके समानही अतुल पराक्रम रखनेवाले बाहुबलीको हानि पहुँचाने की शक्ति देवमें भी नहीं है। वे आपके छोटे भाई हैं यह सोचकर मैंने पहले उनको स्वामीकी सेवाके लिए प्रानके, हितकारी वचन, विनय सहित कहे। बादमें दबाकी तरह तीन मगर परिणाममें हितकारी ऐसे कठोर वचन कहे; मगर उन्होंने श्रापकी सेवा न मीठे वचनोंसे स्वीकार की और न कडुवे वचनोंसेही की। कारण,जव मनुप्यको सनिपातका रोग हो जाता है तब कोई दवा उसको फायदा नहीं पहुँचाती। बलवान बाहुवालीको इतना घमंड है कि, वे तीन लोकको तिनके समान समझते हैं और सिंहकी तरह किसीको अपना प्रतिद्वंदी नहीं मानते। जब मैंने आपके सुपेण सेनापतिका और आपका वर्णन किया तब "वे किस गिनतीमें है।" कहकर उन्होंने इसतरह नाक सिकोड़ी जैसे दुगंधसे सिकोड़ते हैं। जब मैंने बताया कि आपने छः खंड पृथ्वी जीती है तय, उसे पूरी तरहसे सुनते हुए अपने भुजदंडकी तरफ देखा और कहा, "हम पिताजीके दिए हुए राज्यसेही संतुष्ट होकर बैठे रहे, हमने दूसरी तरफ ध्यान नहीं दिया, इसीलिए भरत छः खंड पृथ्वी जीत सके हैं। सेवा करनेकी बात तो दूर रही उलटे चे तो आपको, निर्भय होकर, बाधनको दुहनेके लिए बुलाया जाता है ऐसे, आपको लड़ाई के लिए बुलाते हैं। आपके भाई ऐसे पराक्रमी, मानी और महाभुज (बलवान ) है कि वे गंधहस्तिकी