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भरत-बाहुबलीफा वृत्तांत
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राजाओंके बजाए हुए शृंगीकी आवाज सुनकर हजारों किरात निकुंजोंमसे निकल निकलकर जाने लगे। इन शूर-बीर किरातोंमेंसे कई वाघोंकी पूँछोंकी चमड़ियोंसे,कई मोरपंखोंसे और कई लताओंसे शीघ्रताके साथ अपने केश बाँधने लगे। कई साँपोंकी चमड़ियोंसे, कई वृक्षोंकी छालोंसे और कई गायोंकी त्वचाओसे,अपने शरीरपर लपेटे हुए मृगचर्मोको बाँधने लगे। बंदरोंकी तरह कूदते हुए वे अपने हाथों में पत्थर और धनुप लेकर स्वामी. भक्त श्वानकी तरह अपने स्वामीके आसपास आकर खड़े होने लगे। वे आपसमें कह रहे थे, कि हम भरतकी संपूर्ण सेनाका नाश कर अपने महाराज वाहुवलीकी कृपाका बदला चुकाएँगे।
(१७५-१६३) इस तरहका उनका सकोप प्रारंभ देखकर, सुवेग विवेकधुद्धिसे मनमें सोचने लगा, "अहो ! ये बाहुबलीके वशमें रहे हुए उनके देशके लोग, ऐसी शीघ्रतासे लड़ाईकी तैयारियाँ कर रहे हैं, मानों उनके पिताका वैर लेना है। बाहुवलीकी सेनाके पहले, लड़ाईकी इच्छा रखनेवाले ये किरात लोग भी, इस तरफ आनेवाली हमारी सेनाका नाश करने के लिए उत्साहित हो रहे हैं। यहाँ मुझे एक भी ऐसा आदमी दिखाई नहीं देता जोलड़नेको तैयार न हो; और एक भी ऐसा नहीं दिखता जो बाहुबलीकी भक्ति न रखता हो। इस देशमें हल पकड़नेवाले किसान भी वीर और स्वामीभक्त हैं। यह इस भूमिका प्रभाव है या बाहुवलीके गुणका ? सामंत और प्यादे वगैरा तो खरीदे जा सकते हैं, मगर यह जमीन तो बाहुबलीके गुणोंसे खिंचकर, उसकी पत्नीसी हो गई है। मुझे ऐसा लगता है कि, बाहुबली