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१०] . त्रिषष्टि शलाका पुग्य-चरित्रः पर्व १. सर्ग ३. सकता था। बड़े शकुट ( छकड़े ) का भार खींचनवाले बड़े बैलांची तरह वे सदा अनेक जड़ाइयोंने अपने बलका उपयोग करते थे । नत्र भरतपतिन जबर्दस्ती यमराजकी तरह उनपर चढाई की नत्र, उनको अनिष्ट की सूचना करनेवाले, अनेक उयात होने लग । चलती हुई चक्रवर्तीची सेना भारसे दुखी हुई हो ऐसे घरों के बीचोंचो हिलानी हुई जनीन काँपने लगी। चवर्तीक दिशाओं में फैले हुए महान प्रतापसे हों ऐसे, दिशायामें दावानल ममान श्राग जलने लगी | उड़ती हुई बहुत अधिक वृद्धि दिशाएँ पुग्विणी (रजस्वला) वियोंकी तरह नहीं देखने लायक हो गई। क्रूर और कर्णदु शब्द करनेवाले मगर जैन समुद्र में लड़ते-टऋगत है वैसे बुट पवन परस्पर टकराते हुए बढ़ने लगे। बलदी हुई नशानों की तरह सभी लच्छ वाघोंओ हरानेवाला, यानाश सकापात होने लगा। क्रोबसे उठकरमानों नीनपर, हाथ पछाड़ रहा होगेसी डरावनी धावाजवानी विजलियाँ चमकने लगी और मानों मृत्युलक्ष्मीक छत्र हाँ ऐसे चीलों और कीयांक नमूह आकाश जहाँ तहाँ उड्न लगे। (३३५-३४७) ___उन तरफ मान कवच, चुल्हाड़ी और भालोंके पलोंकी किरणों यात्राशन रहनवान्नेहनारकिरणोंबाने सूरजको करोड़ किरणोंवाला बनानवान्ने ग्इंड इंड,वनुष और मुद्गरोस आकाश को बड़े बड़े दाँतोंवाला बनानेवाले, वनाओंमें बनी हुई वायों, सिंहों और साँपोंकी नन्बागेस आकाशमें फिरनेवाली बंबरी वियाँको डरानेवाले, और बड़े बड हाथियोंरूपी बादलोस दिशायो मुन्द्रमागको अंधकारपूर्ण ऋग्नवाने भरत राजा श्रागे