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प्रथम भव-धन सै
उस नगरमें एक 'धन' नामक सेठ रहता था। वह सारी संपत्तियोंका इसी तरह आश्रय था जैसे सारी नदियोंका आश्रयः समुद्र है। वह यश रूपी दौलत-. का स्वामी था । उस महत्वाकांक्षी सेठके पास इतना द्रव्य था कि जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। उस [द्रव्य] का उपयोग चाँदनीकी तरह लोगोंको लाभ पहुँचाना था:। धन सेठ रूपी पर्वतसे सदाचार रूपी नदी बहती थी जो सारी पृथ्वीको पवित्र करती थी। वह सबके लिए सेव्य (सेवा करने लायकः) था । उसमें यशरूपी वृक्षके, उदारता, गंभीरता और धीरजरूपी उत्तम बीज थे। उसके घर अनाजके ढेरोंकी तरह रत्नोंके ढेर थे और बोरोंकी तरह दिव्य वस्त्रोंके ढेर थे। जैसे जल-जंतुओंसे समुद्र शोभता है उसी तरह घोड़े, खच्चर,ऊँट आदि वाहनोंसे उसका घर शोभता था । शरीरमें जैसे प्राणवायु मुख्य है उसी तरह वह धनी, गुणी और यशस्वी लोगोंमें मुख्य था । जैसे महासरोवरके पासकी जमीन झरनोंके जलसे भर जाती है वैसे ही उसके धनरूपी झरनोंसे उसकी नौकररूपी भूमि भी भर गई थी ( उसके नौकर भी गरीब नहीं रहे थे। )
एक बार उसने उपस्कर (आभूषण, किराना, वगैरा). लेकर. वसंतपुर जाना स्थिर किया। उस समय वह मूर्तिमान उत्साह मालूम होता था । उसने सारे शहरमें ढिंढोरा पिटवाया कि, "धन सेठ वसंतपुर जानेवाले हैं। इसलिए जिनकी इच्छा हो वे उनके साथ चलें। वे जिनके पास पात्र नहीं होगा उनको पात्र देंगे, जिनके पास सवारी नहीं: