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त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्र: पर्व १. सर्ग ४.
लीलामय (खेलते हुए) नीलकमलकी भ्रांति पैदा करनेवाले इंद्रनीलमणिके बड़े लिए.थे और कई सुभ्र (मुन्दर भौहोवाली) वालाोंने अपने नखरत्नकी कांतिरूपी जलसे अधिक शोमावाले दिव्य रत्नमय कुंम लिए थे। इन सभी स्त्रियोंने देवतास जिनेंद्रको स्नान कराते हैं वैसे अनुक्रमसे सुगंधित और पवित्र जलधारासे धरणीपतिको स्नान कराया। स्नान करके राजाने दिव्य विलेपन कराया, दिशाओंकी चमके समान उनले कपड़े पहने, और ललाटपर मंगलमय चंदनका तिलक किया, वह यशरूपी वृक्षका नवीन अंकुर नान पड़ता था। आकाश जैसे बड़े ताराओंके समूहको धारण करता है वैसेही अपने यशपुंजके समान उजाले मोतियोंके श्राभूषण उसने पहने। और कलशसे जैसे प्रासाद (महल) शोमता है वैसेही, अपनी किरणोंसे, सूर्यको लजानेवाले मुकुटसे, वह शोभित हुआ। वारांगनाओंके करकमलोंसे बार बार हलते हए और कानों के लिए श्रामयणके समान बने हुए दो चामरोंसे वह विराजने (शोमने लगा)। लक्ष्मीक सदनलप (घरके समान कमलाको धारण करनेवाले पन्न हदसे (कमलोंके सरोवरसे) जैसे चूलहिमवंत नामका पर्वत शोमता है वैसेही सोनेक कलशवाले सफेद छत्रसे वह मुशोमित होने ल सदा पासही रहनेवाले प्रतिहार (दरवान) हो वेस सोलहजार यन अक्त बनकर उसके आस-पास तमा हो गए । फिर इंद्र जैसे ऐरावण हाथीपर सवार होता है वैसेही, ऊँचे भस्थल के शियरसे दिशाम्पी मुखको ढकनेवान रत्नकुंजर - नामक हार्थीपर वह सवार हुअा। नत्कालही उत्कट (बड़ी) मदकी घागासे दूसरे मेधके समान मालूम होनेवाले उस