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. ... .. भ. ऋषभनाथका वृत्तांत
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गृहस्थोंके लिए बारह व्रत हैं। ये सम्यक्त्वके मूल हैं। पंगु, कोढ़ी और कूरिणत्व (अंगका अव्यवस्थित) होना हिंसाका फल है।इसलिए बुद्धिमान पुरुषोंको संकल्पसे (इरादापूर्वक) निरपराध (बेगुनाह त्रस जीवोंकी) हिंसा करनेका त्याग करना चाहिए। मनमनत्व, काहलपन (मुँहका एक रोग), मूकता (गूंगापन), और मुखरोग, इनको झूठके फल जान, कन्या संबंधी झूठ वगैरा पाँच असत्योंको छोड़ देना चाहिए। कन्या, गाय और भूमि संबंधी झूठ बोलना, धरोहर दबाना और झूठी साक्षी देना ये पाँच स्थूल ( मोटे) असत्य कहलाते हैं। दुर्भाग्य, प्रेष्यता, (कासिदका काम) दासता, अंगका छिदना और दरिद्रता, इनको अदत्तादानका फल जान स्थूल चौर्यका त्याग करना चाहिए। नपुंसकता, और इंद्रियके छेदको अब्रह्मचर्यका फल जान, बुद्धिमान पुरुषको स्वस्त्रीमें संतोष और परस्त्रीका त्याग करना चाहिए। असंतोष, अविश्वास, आरंभ और दुःख, इन सबको परिग्रहकी मूच्छाका (तीव्र इच्छाका) फल जान परिग्रहका प्रमाण करना चाहिए। (ये पाँच अणुव्रत कहलाते हैं)।
दशों दिशाओंमें निर्णय की हुई सीमासे आगे न जाना, दिगवत नामक पहला गुणव्रत कहलाता है । शक्ति होते हुए भी भोग और उपभोग करनेकी संख्या ठहराना भोगोपभोग प्रमाण नामका दूसरा गुणवत कहलाता है। आर्त और रौद्र नामक चुरें ध्यान करना, पापकर्मका उपदेश देना, किसीको ऐसे साधन देना जिनसे हिंसा हो तथा प्रमादाचरण, इन चारोंको अनर्थदंड कहते हैं; शरीरादि अर्थदंडके प्रतिपक्षी अनर्थदंडका त्याग करना
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