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२५६ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग ३.
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चमर लेकर खड़े थे; चमर ऐसे मालूम होते थे मानों हृदयमें भक्ति नहीं समाई थी इसलिए वह बाहर निकल आई और उसीके ये समूह हैं ! समवसरण चारों दरवाजापर अनोखी काँति समूहवाले धर्मचक्र (प्रत्येक दरवाजेपर एक धर्मचक्र) सोने कमलोंमें रखे थे। दूसरी बात भी लो करनी थी,व्यतरोन वे सभी की। कारण साधारण समवसरणमें वेही अधिकारी हैं।
(४५२-४५) सवेरक समय चारों तरहक, करोड़ों देवताओंके साथ प्रमु समवसरण में प्रवेश करनको चले। उस समय देवता हजार पत्तोंवाले सोने नो क्रमल बनाकर क्रमश: प्रभुके आगे रखने लगे। उनके दो दो कमलोपर स्वामी पर रखने लगे और देवता, ज्योंही प्रमुके पैर अगले कमलोंपर पड़ते थे त्योंही पिछले कमल
आगे रख देते थे। जगत्पतिन पूर्वके द्वारसे समवसरणमें प्रवेश किया, चैत्यवृक्षकी प्रदक्षिणा की और फिर वे तीर्थको नमस्कार कर सूर्य जैसे पूर्वांचलपर चढ़ता है वैस,जगतके मोहरूपी अंधकारका नाश करने के लिए, पूर्वाभिमुख (पूर्व दिशाकी तरफ मुँह याले) सिंहासनपर आरूढ़ हुग-बैठे । नव व्यतन दूसरी तीन दिशाओंमें, रत्नोंके तीन सिंहासनांपर प्रमुकी रत्नमय तीन प्रति. माएँ स्थापित की । यद्यपि देवतापमुके अंगूठेकी प्रतिकृति (नकल) भी यथायोग्य करने लायक नहीं है, तथापि प्रमुके प्रतापसेही । प्रमुकी प्रतिमाएँ यथायोग्य (ग्रह) बनी थी। प्रमुक मस्तक (प्रतिमाओंके मस्तकों सहित चारों तरफ शरीरकी कांतिका मंडल (भामंडल ) प्रगट हुआ। इस महलकं तेनके सामने सूर्यमंडलका तंत्र खद्योत (जुगन् ) के समान मालूम होता था। मेव