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भ. ऋषभनाथका वृत्तांत ... [२४१
'प्रभुने पारणा किया,इससे और देवताओंने रत्नादिका मेह बरसाया, इससे राजाओं और नगरके लोगोंको अचरज हुआ। और वे श्रेयांसके मंदिरमें आने लगे। कच्छ और महाकच्छ आदि क्षत्रिय तपस्वी भी भगवानके आहार करने की बात सुनकर बहुत खुश हुए और वहाँ आए। राजा, नागरिक और जनपदोंके (गाँवोंक) लोगोंका शरीर रोमांचित हो गया। वे प्रफुल्लित होकर श्रेयांसकुमारसे कहने लगे, "हे कुमार, तुम धन्य हो कि प्रभुने तुम्हारा दिया हुआ गन्नेका रस भी स्वीकार किया, मगर हम सबकुछ भेट कर रहे थे तो भी उन्होंने कोई चीज स्वीकार नहीं की सबको तिनकेके समान समझा। वे हमपर प्रसन्न न हुए। प्रभु एक बरस तक गाँवों, शहरों, आकरों, (खानों) और जंगलोंमें फिरे, मगर उन्होंने हममेंसे किसीका भी आतिथ्य स्वीकार नहीं किया। इसलिए भक्त होनेका अभिमान रखनेवाले हमको धिक्कार है ! हमारे घरोंमें विश्राम करना और हमारी चीजोंको स्वीकार करना तो दूर रहा, मगर आज तक उन्होंने हमको संभावित भी नहीं किया-बातचीत करनेका मान भी हमें नहीं दिया। जिन्होंने लाखों पूर्वोतक हमारा पुत्र की तरह पालन किया, वे प्रभु इस समय हमारे साथ अनजानसा बरताव करते हैं।" (३०३-३१०) : श्रेयांसने कहा, "तुम ऐसा क्यों कहते हो ? ये स्वामी इस समय पहले की तरह परिग्रहधारी राजा नहीं हैं। इस समय तो ये संसार रूपी आवर्त (भँवर या चक्कर) से निकलनेके लिए सभी सावध व्यापारका त्याग करके यति हुए हैं । जो भोगकी