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. .भ० ऋषभनाथका वृत्तांत
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(पैरोंका एक जेवर ) जमीनपर आ गिरा है। पवनसे हिलती हुई वृक्षकी शाखाएँ ऐसी मालूम होती थीं, मानों वे पर्वतकी भुजाएँ हैं और हाथोंके इशारोंसे वह नमि-विनमिको बुला रही हैं। नमि-विनमि वैताठ्य पर्वतपर आ पहुँचे । (१७६-१८५) ... : नमि राजाने जमीनसे दस योजन ऊपरकी तरफ दक्षिणके हिस्सेमें पचास नगर वसाए । उनके नाम थे-बाहुकेतु, पुंडरीक, हरिकेतु, सेतकेतु, सारिकेतु, श्रीबाहु, श्रीगृह, लोहार्गल, भरिजय, स्वर्गलीला, वज्जगल, वनविमोक, महिसारपुर, जयपुर,सुकृतमुखी,चतुर्मुखी, यहुमुखी, रक्ता, विरक्ता, पाखंडलपुर, विलासयोनिपुर, अपराजित, कांचिदाम, सुविनय, नमःपुर, क्षेमकर, सहचिह्नपुर, कुसुमपुरी, संजयती, शक्रपुर, जयंती, वैजयंती, विजया, क्षेमंकरी, चंद्रभासपुर, रविभासपुर, सप्त. भूतलावास, सुविचित्र, महाध्रपुर, चित्रकूट, त्रिकूटक, वैश्रवणफूट, शशिपुर, रविपुर, विमुखी, वाहिनी, सुमुखी, नित्योदो: तिनी और श्रीरथनुपुर चक्रवाल। .. किन्नर पुरुषोंने पहले वहाँ मंगलगान किया। फिर नमिने रथनुपुर चक्रवाल नामक सर्वोत्तम नगरमें निवास किया। यह शहर सभी नगरोंके बीचमें था । (१८६-१६५)
... धरणेंद्रकी श्राक्षासे विनमिने भी वैतागके उत्तर विभाग, साठ नगर यसाए । उनके नाम थे,-अर्जुनी, बामणी, वरस. हारिणी, कैलाशवारणी, विशुद्वीप, किलिफिल, चारचूदामणि, नंद्रभूपण, यशवत, फुसुमचूल, हमगर्भ, मरक, शंकर, लकमी. एन, चामर, विमल, असुमत्कृत, शिवमंदिर, यमुमती, सर्वसिद्धस्तुन, सर्पशगुजय, केतुमालांक, नान, महानंदन,