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सागरचंद्रका वृत्तांत
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सुगंधसे भौंरोंको खुश कर के जवानोंके ललाटकी तरह बागको सुशोभित कर रहा था। लवली लता (पीले फूलोंवाली एक लता) अपने फूलोंके गुच्छोंके भारसे इस तरह झुकी हुई थी जिस तरह पतली कमरवाली स्त्री पुष्ट स्तनोंके भारसे झुक जाती है। चतुर कामी पुरुष जैसे मंद-मंद आलिंगन करता है वैसे मलयपषन आम्रलताओंका धीरे धीरे आलिंगन करने लगा। लकड़ीवाले पुरुषकी तरह कामदेव जंबू, कदंव, आम और चंपक वृक्षरूपी लकड़ियोंसे मुसाफिरोंको मारने में समर्थ होने लगा। नवीन पाटल-पुष्पोंके संपर्कसे ( मेलसे) सुगंधित बनाहुआ मलयाचल पवन वैसेही सुगंधित जलकी तरह सबको आनंदित करता था। मकरंदके रससे भराहुआ महुएका पेड़, भौरोंकी गुंजारसे ऐसे गूंज रहा था जैसे मधुपात्र भौरोकी गुंजारसे गूंजता है। गोलिका और धनुपका अभ्यास करनेके लिए कामदेवने, ऐसा मालूम होता था मानों कदंवके पुष्पके बहाने गोलिका बनाई है। जिसको इष्टापूर्ति (परोपकारके लिए कूत्रा, बावड़ी खुदवाना और प्याऊ विठाना) पसंद है ऐसे बसंत ऋतुने, वासंतीलताको भौंरे रूपी मुसाफिरके लिए,मकरंदरसकी एक प्याऊसी बना रखी थी। जिनके पुष्पोंके आमोदकी समृद्धि (प्रभाव) बहुत मुशकिलसे हटाई जासके ऐसे सिंदुवारके वृक्ष मुसाफिरोंकी नासिकाओंमें सुगंध पहुँचाकर उनको, विपकी तरह मुग्ध बनाते थे। वसंतरूपी उद्यानपालके नियत किए हुए (सिपाहियोंकी तरह ) चंपक-वृक्षोंमें बैठे भौरे निःशक होकर घूमते थे। यौवन जैसे स्त्री और पुरुष दोनोंको सुशोभित करता है पैसेही वसंत-ऋतुभी अच्छे-बुरे सभी तरहके वृक्षों और