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. . . . सागरचंद्रका वृत्तांत
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और जैसे सर्प तीन तरहकी ताड़ना-विशेषकी परवाह नहीं करते वैसेही युगलिए हाकार, माकार और धिक्कारकी-तीन तरहकी-नीतिकी उपेक्षा करने लगे। तब ( समझदार ) युगलिए प्रभुके पास आए और उन्होंने (राज्यमें) जो असमंजस (अनुचित) घटनाएँ होती थीं वे कह सुनाई। सुनकर तीन ज्ञान (मति, श्रुति और अवधि ) के धारक और जातिस्मरणज्ञानवाले प्रभुने कहा, "दुनियामें जो लोग मर्यादाका उल्लंघन करनेवाले होते हैं उनको दंड देनेवाला राजा होता है। राजाको पहले ऊँचे आसनपर बिठाकर अभिषेक किया जाता है। उसके पास अखंड अधिकार और चतुरंगिणी सेना (हाथी, घोड़े, रथ और प्यादोंकी सेना ) होती है।' (८६३-८६८)
तब उन्होंने कहा, "हे स्वामी, श्राप हमारे राजा वनिए । आपको हमारी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए । कारण, हममें आपके समान दूसरा कोई नहीं है ।" (EEE)
प्रभुने कहा, "तुम उत्तम कुलकर नाभिके पास जाकर प्रार्थना करो। वे तुम्हें राजा देंगे। ६००)
__तदनुसार उन्होंने कुलकराग्रणी नाभिसे जाकर प्रार्थना को। तब उन्होंने कहा, "ऋपभदेव तुम्हारा राजा वने ।"(E0१)
युगलिए खुशी खुशी प्रभुके पास आए और कहने लगे, "नाभि कुलकरने तुम्हींको हमारा राजा बनाया है। (६०२)
उसके बाद वे युगलिए प्रभुका अभिषेक करनेको जल लेनेके लिए गए। उस समय स्वर्गपति-इंद्रका सिंहासन काँपा। उसने अवधिज्ञानसे प्रभुके राज्याभिषेकका समय जाना और वह जैसे