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१६४] त्रिपष्टि शलाका पुरुष-चरित्र; पर्व १. सर्ग २.
फिर इंद्रने प्रभुके दुपट्टेके पल्लेके साथ दोनों देवियोंके दुपट्टोंके पल्ले इसतरह बाँध दिए जिस तरह जहाजके साथ नौकाएँ बाँधी जाती है। श्राभियोगिक देवोंकी तरह इंद्र खुद भक्तिसे प्रभुको गोदमें उठाकर, बेदीगृहमें लेजानेको चला, तब दो इंद्रापियोंने श्राकर तत्कालही दोनों देवियोंको गोदमें उठा लिया
और हस्तमिलापको छुड़ाए बगैर स्वामीके साथही चलीं । तीनलोकके शिरोरत्न के समान वधू-बरने पूर्वद्वारसे वेदीवाले स्थानमें प्रवेश किया। किसी बायन्त्रिंश (पुरोहितका काम करनेवाले) . देवताने, तत्कालही, मानों पृथ्वी से भाग उठी हो ऐसे, वेदीमें आग प्रकट की। उसमें समिध डालनेसे धुआँ उठकर श्राकाशमें फैलने लगा, वह ऐसा मालूम होरहा था, मानों आकाशचारी मनुष्यों (विद्याधरों) की स्त्रियोंके अवतंसों ( कर्णफूलों) की श्रेणी है । (८६५-८७०)
त्रियों मंगलगीत गा रही थीं । प्रभुने सुमंगला और सुनंदाके साथ अष्ट मंगल (आठ फेरे ) पूरे हुए तबतक वेदीकी प्रदक्षणा की। फिर असीसके गीत गाए जा रहे थे तब इंद्रने तीनोंके हायोंको अलग किया और साथही उनके दुपट्टोंके पल्लोकी गाँठं भी खोली । (८७१-८७२)
फिर, स्वामीके लग्नोत्सवसे श्रानंदित इंद्र, रंगाचार्य (सूत्रधार) की तरह याचरण करते हुए, इंद्राणियों सहित हस्तामिनयकी लीलाएँ बता नाच करने लगा । पवनके द्वारा नचाप हुप वृक्षों के साथ लैंसे आश्रित लताएँ भी नाचने लगती है वैसेही इंद्रके साथ दूसरे देवता भी नाचने लगे । कई देवता चारणों की तरह. . . जय-जयकार करने लगे; कई भारत-नाट्य पद्धतिके अनुसार. .