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१७६ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्ष १. सर्ग २.
होता था। अगर कोई प्रमुके बल्लकी परीक्षाके लिए, उनकी अँगुली पकड़ता था तो वह उनके श्वासके पवनसे रेतीके कणकी तरह उड़कर दूर जा गिरता था। कई देव-कुमार कंदुक (गंद) की तरह प्रमुक सामने लोटते थे और विचित्र कंदुकांसे (नदीसे) प्रभुको खिलाते थे। कई देवकुमार राजशुक्र (पाले हुए तोते) का रूप धारण कर चाटुकार ( खुशादम करनेवाले ) की तरह, "जीते रहो ! जीते रहो । वुश रहो ! खुश रहो !" इत्यादि तरह तरहके शब्द बोलते थे। कई देव स्वामीको खुश करने के लिए मोर बनकर केकावाणीस (मोरकी बोलीस, पहज स्वरमें गाते थे और नाचते थे। प्रमक मनोहर हस्तकमलको ग्रहण करने और स्पर्श करने के इरादेसे कई देवकुमार इंसाका रूप धारण कर गांधार स्वरमं गायन कर. प्रभुके यासपास फिरते थे। कई देवकुमार प्रमुका प्यारभरा दृष्टिपात रूपी अमृतपान करनेकी इच्छासे क्रोचपक्षीका रूप धारण कर उनके सामने मध्यम स्वर में बोलने थे। कई प्रमुके मनको प्रसन्न करने के लिए कोयलका रूप धारण कर. पासकं वृक्षपर बैट, पंचम स्वरमें गाते थे। कई अपनी यात्माको पवित्र करनेकी इच्छासे, प्रमुका वाहन बननेके लिए घोड़का रूप धारण कर. धैवत ध्वनिमें हिनहिनातं हुए प्रमुके पास आत थे। कई हाधीका रूप धारण कर निषाद स्वरमें बोलते हुए नीचा मुंह किए ढासे प्रमुके चरणोंको स्पर्श करते थे। कई वृषम (बैल) का रूप धारण कर सांगांसे तट. प्रदेशको (पासकी जमीनको) नाइन करत और वृषभ समान स्वगम बालतं हा प्रमुकी दृष्टिको प्रानदित करते थे। को अंजनाचल (काल पहाड़ी के समान बड़े सांका रूप धारण कर परापर लड़त और प्रभुको युद्ध-फ्रीड़ा बताते थे। का