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________________ १७२ ] त्रिषष्टि शलाका पुरुप-चरित्र: पत्र १. सर्ग २. - की। फिर जैसे सूरज बादलोंमें पानी डालना है वैसेही उसने भगवानके अंगूठेमें अनेक तरह के रस भरदिए अयोत अंगूठेमें अमृत भरदिया। अहंत स्तनपान नहीं करते इसलिए जब उनको भूख लगती है तब अपने आप, अमृतरस बरसानेवाला अपना अंगूठा, मुँहमें लेकर चूसते हैं । फिर उसने पाँच अप्सराओंको, धायका काम करनेके लिए वहीं रहने की आज्ञा दी। (६२३-६२६) जिन-स्नात्र हो जाने के बाद. जब इंद्र भगवानको रखने के लिए आया उस समय बहुतसे देवता मेरुशिखरसे नंदीश्वर द्वीप गए। सौधर्मंद्रभी नाभिपुत्रको उनके महल में रखकर, स्वर्गवासियोंके निवास समान नंदीश्वर द्वीपको गया और वहाँ पूर्व दिशाके, क्षुद्र मेरु पर्वतके समान प्रमाणवाले, देवरमण नामके अंजनगिरि पर उतरा। वहाँ उसने विचित्र मणियोंकी पीठिकावाले, चैत्यवृक्ष और इंद्रध्वजद्वारा अंकित, और चार दरवाजोंवाले चैत्यमें प्रवेश किया और अष्टाह्निका उत्सवमहित ऋषभादि अहंतोंकी शाश्वती प्रतिमाओंकी पूजा की। उस अंजनगिरिकी चार दिशाओंमें चार बड़ी बावड़िया है। उनमसं हरेकम एक एक स्फटिक मणिका दधिमुख नामक पर्वत है। उन चारों पर्वतोंके ऊपरके चैत्योंमें शाश्वती अहंतोंकी प्रतिमाएँ हैं। शके चार दिग्पालाने, अष्टाहिका उत्सवसहित, उन प्रतिमाओंकी विधिसहित पूजा की। ___ (६३०-६३६) . १-दूसरे चार छोटे मेरु पर्वत हैं | ८४००० योजन ऊँचे हैं। २-अयम, चंदानन, वारिषण और वर्द्धमान इन चार नामावालीही शाश्वती प्रतिमाएँ होती हैं। . -
SR No.010778
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Parv 1 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGodiji Jain Temple Mumbai
Publication Year
Total Pages865
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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