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१४२ ] - विघष्टि शलाका पुरुष-चरित्रः पर्व १. सर्ग २.
(लकड़ी ) से हवन किया और उस श्रागसे बनी हुई राखकी पोटली बनाकर दोनोंके हाथों में बाँधी । यद्यपि वे (प्रभु और माता) बड़ी महिमावाले थे तो भी दिशाकुमारियोंका भक्तिकम ऐसाही है। उन्होंने भगवान कानोंके पास जोरसे यह पुकारकर कि,"तुम पर्वत समान आयुष्मान हो"पत्थरके दो गोले लमीनपर पचाउँपश्चात प्रमुको और माताको सूतिका भुवनमें सेजपर मुलाकर वे मंगलगीन गाने लगी । (३०१-३१७)
तब, जैसे लग्नकं समय सभी बाज एक साथ बनते हैं वैसेही शास्वत घंटांकी एक साथ कैंची श्रावाज हुई और पर्वतोंके शिखरकी तरह अचल इंद्रोंके ग्रासन, सहमा हदय काँपता है उस तरह, काँपने लगे । उस सौधमंद्रकी आँखें गुस्से के वेगसे लाल हो गई, कपालपर भ्रकुटी चढ़नेसे उसका मुख विकराल मालूम होने लगा, प्रांतरिक क्रोधरूपी ज्वालाकी तरह उसके होठ फड़कने लगे, मानो श्रासन स्थिर करने की कोशिश करता हो
से उसने एक पर उठाया और कहा, "यान किसने यमराजको पत्र भेजा है। फिर उसने वीरतारूपी भागको प्रज्वलित करनेके लिए वायुके समान वन उठानेकी इच्छा की । (३१८-३२१)
इस तरह सिंहके समान क्रुद्ध इंद्रको देखकर, मानो मूर्तिमान मान हो ऐसे सेनापत्तिने श्राकर विनती की, "स्वामी ! श्राप मेरे जैसा नौकर है तो भी श्राप बुदही क्यों क्रोप करते हैं.? हे जगत्पति ! मुझे आज्ञा दीजिए कि में आपके किस शत्रका नाश कर " (३२२-३२३)
उस समय अपने मनका समाधान कर इंद्रने अवधिज्ञानसे देखा तो उस मालूम हुआ कि प्रमुका जन्म हुआ है। आनंद