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१०६] त्रिषष्टि शलाका पुरुष-चरित्र पर्व १. सर्ग १.
दूसरी लब्धियाँ भी उनको मिली थीं। मगर इन लब्धियोंका उपयोग वे कभी नहीं करते थे। सच है
"मुमुक्षत्रो निराकांक्षा वस्तुपस्थितेष्वपि ।"
[मोन जाने की इच्छा रखने वाले मिली हुई वस्तुओंकी भी इच्छा नहीं रखते, यानी उनका उपयोग नहीं करने ।]
(८८४-८८१) यत्र वचनाम स्वामीन बीस स्थानककी आराधना करके दृढ़तीर्थकर नाम-गोत्रकर्म उपार्जन किया। उन बीस स्थानोंकापदोंका वर्णन नीचे दिया जाना है।
१. अरिहंत पद- अरिहनोंकी और अरिहंतोंकी प्रतिमाकी पूजा करनेसे, उनकी अच्छे अर्थवाली स्तुति करनेसे और उनकी निंदा होती हो तो उसका निषेध करनेसे इस पढ़की श्राराधना होती है।
२. सिद्ध, पद-सिद्धस्थानों में रहे हुए सिद्धोंकी भक्तिके लिए लागरणका उत्सव करनेसे तथा यथार्यरीत्या सिद्धनाका कीर्तन-मजन करनेसे इस स्थानकी आराधना होती है।
३. प्रवचन पद बालक, बीमार और नये दीक्षित शिष्य वगैरा यतियोंपर अनुग्रह करने और प्रवचनका यानी चतुर्विध संघ अथवा जनशासनपर वात्सल्य स्नेह रखनेसे इन स्थानककी श्राराधना होती है।
४. आचार्य पद-बड़े श्रादरके साथ आहार, दवा, और कपड़े वगैरके दान द्वारा गुनके प्रति वात्सल्य या भक्ति दिखानेसे इस पदकी श्राराधना होती है।