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२] प्रियष्टि शलाका पुश्प-चरित्रः पर्व १. सर्ग १.
सुवर्णजय राजाने, पुत्रको योग्य समझकर राज्य दिया और बुदन दीन्ना लेली। (६८५-६८)
__ इधर बन्नसेन चक्रवर्तीन अपने पुत्र पुष्करपालको राज देकर दीना ली और वे तीर्थकर हुए। (६०)
बननंधन अपनी प्रियाक साथ संमोग करते हुए राज्यमारको इस तरह बहन किया जिस तरह हाथी कमलको बहन करता है। गंगा और समुद्रकी तरह वे कमी वियोगी नहीं हुए। निरंतर मुत्रका उपमोग करते हुए उस दंपती एक पुत्र उत्पन्न हुया। (३६१-६२)
में मर्यक्र मारकी उपमाको नेवन करनेवान और महाक्रोधी सीमा सामंत गजा पुष्करपालके विरोधी हो गए। इसने नकी तरह उनको वश करने के लिए वनवको बुलाया । यह बलवान राजा उसको मदद करने लिए चला । हुंदकेसाय नेम इंद्राणी जाती है उसी तरह अचलमक्ति रखनेवाली श्रीमती मी बननंयके साथ चली। वे श्राव रस्ते पहुचें होंगे कि उनको अमावसकी गतने भी चंद्रिकाका भ्रम करानेवाला एक शरवण (कॉम) का महावन दिखाई दिया। मुसाफिरोंन बताया कि उस गन्त में वृष्टिविष सर्प (जिन साँपोंक देखतेही जहर चढ़ता है ऐसे सप) रहते हैं, इसलिए वह दूमर मार्ग चला । कारण
"..."नयना हि प्रस्तुतार्थधु तत्पराः". [नीतिवान पुरुष प्रस्तुन अर्थमट्टी तत्पर होत है।]
(६६३-६६७) पुंडरीक (मफेद कमल) की अमावाला यमघ पुरीकिणी