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श्रात्मविलास] द्वारा उसकी अनन्तताको दवाना चाहता है। क्योकि ग्वार्थक द्वारा उस अनन्तताका संकोच होता है, इमो लिये उमका परिणाम पाप व दुःख है। जितना-जितना यह अहकाररूपी ढक्कन पतला पड़ेगा, उतना-उतना ही पुण्य व मुम्ब अधिक होगा और जब यह ढक्कन सर्वथा दूर हो जायगा, तभी और केवल तभी निरुपाधिक च निरपेन पुण्य व मुखकी प्राप्ति होगी।
हे सुखके अभिलापियो । यदि सुख चाहते हो तो अपने स्वार्थोंका बलिदान करो, तभी आप सुनके अधिकारी बनने। त्याग विना सुख कहाँ १ देना ही पाना है । जो कुछ भी वर्तमान में तुमको मिल रहा है, यह तुम्हारे किसी त्यागका ही परिणाम है । छोडना ही पुण्य व मुख है, पकडना हो पाप व दुख है। श्रव तुम वन्दरकी मॉति पदार्थोंसे मुट्ठी भी भरे रखना चाहते हो और मॉडेसे हाथ भी निकालना चाहते हो, यह कैसे सम्भव हो सकता है ? मॉडेसे सही-सलामत हाथ निकालने के लिये मुटुका खाली करना जरूरी है । 'चुपडी और दो-दो'
१. भारतवर्षमै बाज़ीगर वन्दरको विचित्र युक्तिसे पकहते है। वे लोग जंगलमें सक्ढे मुंहका पान उस वृक्षके नीचे रख देते हैं, जिस पर बन्दर बैठा होता है और उस पात्रमें उसके खानेयोग्य रुचिकर पदार्थ डाल देते हैं । धन्दर आता है और उन पदार्थों लेनेके लिये पात्र में हाथ डालता है । खाली हाथ तो उस पात्र में प्रवेश कर जाता है, परन्तु पदार्थोकी पडसे मुहि भारी हो जाती है। अब वह हाथ पात्र से निकालना चाहता है, लेकिन पदार्थोकी पकढके कारण मुष्टि भारी होनेसे हाथ निकल नहीं सकता । पदार्थीको छोडकर मुष्टि बह खाली करता नहीं और समझता है कि मुझे किसीने पकड़ लिया। ऐसा समझ कर वह चिल्लाता है और बाजीगर मानकर उसको पकड़ लेता है।