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________________ ( १४ ) जो धन हमारा हो सकता हो तो कैशियर (Cashier ) के अधिकारमें आया हुआ सेठका धन कैशियरका होना चाहिये। पुत्रादि बीचमे अधिकार जमानेसे जो हमारे हो सकते हो तो जागीरदारकी भूमिमें उसके कृपिकारद्वारा प्रारोपण किये हुए बीजकी पैदावार पिकारकी होनी चाहिये । बीचमें अधिकार जमानेसे जो स्त्री हमारी हो सकती हो तो गोपालके अधिकारमें आई हुई मालिककी गौ गोपालकी होनी चाहिये । वास्तव में ये पदार्थ तीनों कालमे आपके ही हैं. वीचमें ही इनको हमने अपनाकर अपनेको दुखी किया है। अब आप कृपाकर हमें वह बुद्धिवल दें कि जिससे फिर कभी इन पदाथोंको अपना करके न जानें, आपके आज्ञाकारी सेवककी भॉति निष्काम-भावसे आपके परिवारकी सेवा करें और हानि-लाभ अपना करके न जानें । जो श्राज्ञा आप हमको हमारी बुद्धिद्वारा देवें उसका सत्यतासे पालन करें जो कुछ मुंहसे बोलें वह सत्य बोलें, जो कुछ हमारे द्वारा हो वह सबकी भलाई के लिये हो, जो खावें वह आपका प्रसाद हो, जो पोवें वह आपका चरणामृत हो, हाथोंसे जो कुछ करें वह आपकी सेवा हो,पॉवोंसे चले वह आपकी परिक्रमा हो, जो ऑखोंसे देखें वह आपका रूप ही देखें और कानों से सुनें वह आपका गुणानुवाद हो। मम सर्वस्व स्वाकारह है कृपानिधान ! अपहुँ दोउ कर जोरे मैं श्रीभगवान् ! ॥१॥ (शेष पृ.१०पर देखो) (४) विक्षपहरण प्रार्थना हे भगवन् ! हमारे अपराधोंको क्षमा करें, हमसे भूल हुई कि हम अापके पदायोंको अपना करके जानते रहे और उनपर
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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