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________________ १८३] [साधारण धर्म जाग्रत्के संस्कारोसे यदि स्वप्नमे कोई पदार्थ जाग्रत् जैसे देखे गये तो भी जाग्रत्को कारणता सिद्ध नहीं होती, क्योकि जाग्रत्-अबस्था भी उस प्राजके खेलनेकी एक भूमि ही है। जाग्रतके सादृश्य कोई पदार्थ स्वप्नमें देखे भी गये, तो भी इसीसे जाग्रत्भूमि कारणरूप नहीं हो जाती, बल्कि कारणरूप तो वह अनुभव कर्ता प्राज्ञ ही हो सकता है। इसके इलावा पूर्वपक्षीने जो स्वश्मे जाग्रतपदार्थों की प्रत्यभिज्ञाकी शङ्का की, सो तो सर्वथा निर्मूल ही है, क्योकि जाग्रत्मे जिन पुरुपोको देखा वही पुरुप यदि स्वप्नमे आते तो प्रत्यभिज्ञा हो सकती थी। परन्तु स्वप्नसे जागकर जाग्रत्मे उन्हीं पुरुषोसे स्वप्नके लेत-देत व्यवहारकी चर्चा करे तो कोई भी अपनी कुछ भी साक्षी नहीं देता। इसलिये उस समय प्रत्यभिज्ञा. प्रत्यक्ष नहीं, किन्तु प्रत्यभिज्ञा-भ्रम होता है और जाग्रत्-पदार्थोके सादृश्य अन्य पदार्थाकी उत्पत्ति होती है। सारांश, जाग्रत्मे स्वप्नकी स्मृति होनेसे, अथवा स्वप्नमे जाग्रत्के सादृश्य पदार्थोकी प्रतीति होनेसे जाग्रत्को स्वप्नके प्रति कारणता प्रसिद्ध है। किन्तु यह दोनो ही कार्य है और इन दोनोका कारण वह प्रान ही है। जाग्रत् व स्वप्न दोनोमें परस्पर कारण-कार्यभाव मिथ्या है, क्योंकि जाग्रत्में स्वप्न-अन्तःकरण नहीं और स्वप्नमे जाग्रत्-अन्तःकरण नहीं; फिर उनका कारण-कार्यभाव कैसे हो? (५०) वास्तवमे बात तो है कि स्वापसे जागकर जब हम जाग्रत्मे आते हैं, तब वर्तमान-जाग्रत्के पदार्थ वही कदापि नहीं हो सकते जो कि पूर्व-जाग्रत्मे थे, किन्तु पूर्व-जावतके मजातीय अन्य ही पदार्थ वर्तमान-जाग्रन्में होते हैं। क्योकि देश, काल व वस्तु अन्योऽन्याश्रयरूप होनेसे व ज्ञान-समकालीन होनेसे उनमे स्थिरता कदाचित होती नहीं है. इसलिये वही ये पदार्थ कदाचित नहीं रह सकते, परन्तु उन पूर्व-जामतके सजातीय वर्तमान
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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