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________________ उत्पन्न हुए लप-व्यक्तिकी अत्याकही जा सकती हैं, जिनसे आत्मविलास [१६० द्वि० खण्ड आ सकती । यद्यपि उमी कालरूप-व्यक्तिमे ब्रह्माण्डमे असंख्य विकार उत्पन्न हुए हैं, तथापि उन-उन विकारोको आश्रय करके ही उम-उस कालरूप-व्यक्तिकी उत्पत्ति कही जा सकती है, काल की स्वतन्त्र उत्पत्ति कही भी नही कही जा सकती। बहुत क्या कहें। योगवासिष्ठले अनेक इतिहास और शान्त हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि देश व कालका कोई मूल्य नहीं और ये मायामात्र है । वसिष्ठ-ब्राह्मणकी सृष्टिमे वसिष्ठकी मृत्युको ८ दिन ही हुये थे, कि उस ब्राह्मणने मरकर अपने घरके किसी एक कोणमें ही जन्मान्तरमें राजा-पद्मका शरीर धारण किया और उस ८' दिनमें ही अखण्ड पृथ्वीका ६० हजार वर्षपर्यन्त राज्यभोगका अनुभव किया। फिर पद्म-शरीरसे मृत्यु पाकर वही ब्राह्मण जन्मान्तरमें अपने उसी गृह-कोणमें विदूरथ-राजाके शरीरसे उत्पन्न हुमा और ६० वर्ष राज्यका अनुभव किया, जहाँ इधर पनकी सृष्टिमे पद्मका मृत्यु-काल अर्द्ध-रात्रिका ममय ही बत रहा है । (देखो योगवासिष्ठ उत्पत्ति प्रकरण, सर्ग १४ से ३६) वसिष्ठ-ब्राह्मण-सृष्टिके दिन = पद्म-सृष्टिफे ६० हजार वर्षे तथा पद्म-सृष्टिको १ घडी-विदूरथ-सृष्टिके ६० वर्प। . (१६) शङ्का -~-वस्तुको उत्पत्तिके साथ ही काल उत्पन्न हुया हो, तो वस्तुके नाशके साथ ही कालका नाश हो जाना चाहिये, परन्तु ऐसा अनुभवसे सिद्ध नहीं होता। बल्कि वस्तुके अभाव होनेपर भी कालकी स्थिति पाई जाती है। जब ब्रह्माका एक दिन चारों युगोकी एक हजार चौकडीके व्यतीत होनेपर समाप्त हो जाता, तब ब्रह्माण्डका प्रतय हो जाता है और फिर एक हजार चौकशी युगपर्यन्त ब्रह्माकी रात्रि रहती है, उस काल में ब्राजी सम्पूर्ण ब्रह्माण्डको अपनेमे लय करके निद्रित अवस्था । में रहते हैं, ऐसा शाख-प्रमागमे जाना जाता है । तव ब्रह्माण्डके
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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