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________________ [साधारण धर्म 'समान आधारभूत होकर वस्तुको धारण कर रहे होगे, तो यह भी अनुभवविरुद्ध है। क्योकि घट व जलके समान आधाराधेयभाव भी स्थूल पदार्थों में ही सम्भव है। जितने देशमे जल है, उतने देशमे घटकी स्थिति नहीं, किन्तु जलसे अव्यवहित-भिन्नदेश में स्थित होकर ही घट जलको धारण करता है। परन्तु देश व काल तो वस्तुदेशमे व्यापकर ही स्थित हैं, भिन्न देशमे रहकर नहीं; क्योकि देश-काल अपरमाणु हैं, अर्थात् पृथ्वी-जलादिके समान परमाणुवाले द्रव्य नहीं हैं। यदि परमाणुवाले द्रव्य होते तो अपना कोई भिन्न देश निरोध करते, परन्तु अपरमाणु होने से आकाशके समान वस्तुदेशमे तादात्म्यरूपसे ही स्थित रहते हैं। .. (१३) उपर्युक्त व्याख्यासे सिद्ध हुआ कि जैसे देश, काल व वस्तु परस्पर समानदेशीय हैं, तैसे ही परस्पर समकालीन भी हैं। अर्थात् एक ही देश व एक ही कालमें रहनेवाले हैं और परस्पर वस्तु-परिच्छेदवाले भी है। यह बात तो स्पष्ट ही है कि जो भिन्नभिन्न जातिवाली वस्तु समदेशी व समकालीन होंगी, वे अन्योऽन्याश्रयरूप ही होंगी। और जो भिन्न-भिन्न वस्तु अन्योऽन्याश्रयरूपसे स्थित होती हैं, वे वास्तवमें अपने स्वरूपसे होती ही नही हैं, केवल भ्रमरूप ही होती हैं। जैसे रज्जुमें भ्रमरूप-सर्प अपने ज्ञानके आश्रय स्थित होता है और सर्पज्ञान अपने ज्ञेयरूप-सर्पके -आश्रय स्थित होता है। सर्प व सर्पज्ञान परस्पर अन्योन्याश्रय होनेसे और समदेशी व समकालीन होनेसे दोनो ही भ्रमरूप होते हैं। सारांश, देश-कालका आश्रय वस्तु और वस्तुका आश्रय देश-काल सिद्ध हुए, इसलिये तीनों ही अन्योऽन्याश्रय होनेसे भ्रमरूप ही हैं। क्योंकि इन तीनोमेंसे प्राक्सिद्धत्व किसीसे भी नहीं पाया गया, इसलिये एकको शेष दो की अपेक्षा है। और जो वस्तु आप ही आश्रयशून्य है वह किसी दूसरेका श्राश्रयभूत कैसे हो
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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