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________________ साधारण धर्म ] . मिनाके समान अन्य वैराग्य नहीं और वैराग्यके समान अन्य सौभाग्य नहीं । मिक्षा कामधेनु है, जो पुरुष भिक्षान भोजन करता है वह मानो नित्य अमृतपान करता है।' उनका यह भी वचन है:. मिक्षाहारी निराहारी भिक्षा नैव प्रतिग्रह। असन्तो वापि सन्तो वा सोमपानं दिने दिने । . अर्थ:-भिक्षान्न आहार करनेवाला निराहारी है (क्योंकि उसने देहाभिमानको वे डाला है और देहाभिमान रखते हुए भोजन करना ही आहार करना है। इस प्रकार भिक्षा प्रतिमह भी नहीं है । चाहे सन्त हो वा असन्त, भिक्षाहारी प्रतिदिन अमृतपान काता है। - देशसुधारके मतवालों और देशस्वराज्यके प्रेमियोंकी दृष्टिमें भिक्षावृत्ति चाहे खटकती हो और द्वेषका पात्र बनी रहे, परन्तु वास्तवमें बात तो है यह कि हकीकी ® स्वराज्य व हनीती सुधार का माधन नो यह भिक्षावृत्ति जिसमें सर्वत्यागरूपी महेशका निवास है, इस ऐसे पवित्र धार्मिक कार्यसे घृणा उपनाकर तो वे देशमुधारके स्थानपर धार्मिक-अशान्ति व धार्मिक-विसवके ही कारण सिद्ध होंगे। हॉ, जो महाशय देशस्वराज्यके कायमें प्रवृत्त है उनके लिये उनकी प्रकृतिके अनुसार यह देशसेवा एक पवित्र साधन है, परन्तु अन्य अधिकारियों के प्रति घृणा करना तो कोई सुधार है ही नहीं, बल्कि उल्टा उनके लिये हानिकारक है और उनकी पवित्र शक्तिका हास करनेवाला है। यह तो ठीक ऐसे - ही है जैसे कोई कारीगर आगे-आगे मकान बनाता जाय और पीछेसे उसको गिराता आवे। जिस सड़कसे वे जा रहें हैं तीन पारमार्थिक - -
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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