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________________ श्रात्मविलास] [ २२४ की ही सहायता है, सूर्य विना किसी एककी भी सिद्धि असम्भव है। सूर्य न हो तो वायु जड़ता करके निश्चेष्ट हो जाय और शब्द एक स्थानसे दूसरे स्थाननक वायुके द्वारा ही पहुँचता है, अतः वायुके निश्चेष्ट होनेपर शब्द-क्रिया ही वन्द हो जाय। वायुको क्रियासे ही स्पर्शगुणकी सिद्धि होती है, अतः इसके निश्चेष्ट होने पर स्पर्श-गुणकी सिद्धी तो बने ही कैसे ? सम्पूर्ण रूप तो स्वयं सूर्यका ही गुण है। जल का रसगुण भी सूर्यके बिना जड़ता आ जानेसे सिद्ध नहीं हो सकता और गन्धगुणकी सिद्धी तो जल करके ही होती है । संसारमें पांचों गुणोंमें रूपगुण ही प्रधान है और यावत् संसारके रूपोंका उद्गमस्थान सूर्य ही है। जितने भी संसारमे रूप हैं वे सात रनोंके ओतप्रोतसे ही सिद्ध होने है ओर वे सातो सूर्यसे ही निकलते हैं। जितने भी पदाथोंमे रूपरङ्ग दृष्टिगोचर होते हैं वे सव रूपरङ्ग पदार्थगत अपने नहीं, किन्तु गव सूर्यके ही हैं। सव पदार्थ स्वगत रङ्गोंको सूर्य से ही प्राप्त करते हैं, वर्तमान साइन्स (विज्ञान) ने अनुभवप्रमाणसे हमको भली-भॉति सिद्ध कर दिया है। सारांश, गुण क्रिया व इन्यमय ही यह ससार है और सम्पूर्ण गुण-क्रियादव्यांके प्रति सूर्यको कारणता प्रसिद्ध है, इसीसे यह कारण-ब्रह्मरूपसे उपास्य है। सूर्य-भगवानका वाहन शास्त्रोंमे सप्त अश्वजड़ित रथ वर्णन किया गया है । यह स्थल गोलाकार जड सूर्य हो, जो उपर्युक्त मात रङ्गोंवाला है, मप्ते अश्वतड़ित . रथ है और वह चेतन साक्षी जिसकी मत्तासे यह सब प्रकाश, रूपरङ्ग व क्रिया प्रकाशित हो रहे हैं, वही इस रथका रथी है । यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् । यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तचेजो विद्धि मामकम ॥ (गीता १.१५,१२)
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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