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________________ आत्मविलास ] [१८६ के विना उसका वोध हो नहीं सकता । जब उसके नामका परिचय मिलता है तब एकाएक प्रेमप्रवाह उमड़ आता है। यह 'नाम' की ही महिमा है। (४) 'नाम'के विना संसारमें कोई क्रिया चेष्टा हो नहीं सकती। नाम न रहे तो सारा संसार नरूपसे स्थित हो जाय । अर्थात् शब्दप्रयोग विना न किसीपर अपना भाव प्रकट किया जा सकता है और न किसीसे कोई चेष्टा ही कराई जा सकती है, यहॉतक कि सिरहाने रक्खी वस्तु भी 'नाम के बिना हमारे हाथमे नहीं पहुंचाई जा सकती। ५) नामरूपी विद्युत इस संसाररूपी स्थूल विद्यु तस, जो वायुयान आदिमें काम कर रही है, अधिक प्रभावशाली है। नामके प्रभावस कोमलको कठोर और कठोरको कोमल बनाया जा सकता है। प्रेमोद्गारपूर्ण नामद्वारा पत्थरको भी पिघलाकर पानीके रूपमें वहाया जा सकता है और क्रोधावेशपूर्ण नामद्वारा पानीमे भी आग उपजाई जा सकती है, जब कि स्थूलविद्यु तसे यह कार्य नहीं हो सकता । उद्धव जव मथुरासे कृष्णसंदेश लेकर व्रजमे गोपियोंको योगका उपदेश देनेको पाए तव गोपियोंके प्रेमविरहरूपी वचनोंने उद्धवपर वह प्रभाव डाला कि अापेकी सुद्ध न रही और सब ज्ञान-ध्यान चल वसा । गोपियाँ कहती हैं " है उद्धव । प्यारेके विना प्यारेकी पातीको हम कहाँ रक्खे १ छातीसे लगाएँ तो जल जायगी, आखोंसे लगाएँ तो गल जायगी” । अव भी उस विरहका फोटो प्रोमियोंफी मण्डलीको कीर्तनद्वारा विह्वल कर देने में समर्थ है। पाठक ! जरा ध्यानसे सुनिये। ज्ञानके अभिमानी उद्धवके सम्मुख गोपियाँ किन मधुर व्यङ्ग वचनोंमे कपटीकृष्णकी तुलना मधुकरके साथ लगा रही हैं और जिन-जिन पदार्थोंमे श्यामवर्ण वस रहा है उन सबमें कपट व कृतघ्नताका अारोप करके
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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