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________________ ६१] [साधारण धर्म चाहते हो तो मनरूपी टेको तोड़ो, इससे छटकारा पाओ, तब तुम शरीर व इन्द्रियोंसे भी अपने आप ही आजाद हो। अन्यथा तो अपने गलेको बछड़ेकी भॉति अधिकाधिक फंसाते जाओगे। और मनसे आजाद तभी होमकते हो, जब कि उपयुक्त मर्यादायोंके अधीन तुम्हारा व्यवहार हो । भयर्यादाओंके अधीन रहकर ही तुम मर्यादाओंसे छुटकारा पा सकते हो, और कोई उपाय है ही नहीं, चाहे कितना ही सिर पटक लो। जिम प्रकार नदीका जल किनारोंकी मर्यादामें चलकर ही बहरेवेकिनार तटविनिमुक्त-सागर बन सकता है, किनारे तोड़कर कदापि नहीं । इसी प्रकार धमक्ति सकल प्रवृत्तियाँ भी तुमको धीरा जाय उन्होंने इसमें मयांदारूपी मेख ठोक दी है। जब वे अपना कुछ कार्य करके विधाम करने लगे तो पोछेसे पामर सीवरूप मट भाता है, संसारमर्यादारूपी मेखकी अवहेलना करके उसको नोद देता है और संसाररूपी लह के पूर्णरूपसे चीरे जानेके पहले ही वह मर्यादारूपी मेलाको तोड़कर आज़ाद होनेके लिये उतावला हो रहा है। यद्यपि संसाररूपी रहा पूर्णरूपसे चीरा जाकर यह मर्यादारूपी मेख भी निकाल पालनेके लिये ही थी, परन्तु वह को पहले ही मर्यादा तोडकर आजाद हुमा चाहता है। इस प्रकार इस पामा-बीवरूपी सर्कटने झानरूपी रे से इस संसाररूपी लो को चीरनेसे पहले ही मोटारपी मेखो तोड़ शो दिया, परतु काँका कर्ता व भोक्ता बना रहने के कारण, उन दुष्ट कमाके प्रतिकाररूपमें अध्यात्मिक, अधिदैविक व अधिभौतिक विविधतापरूपी सांसारिक तरखाने चहुँ भारसे इसके हाथ-पाँवको जकर लिया लिया भानादीका मजा ? अच चिल्लाता है, सिर पीटता है !! परन्तु निकलनेका तो और कोई उपाय है ही नहीं । अन्ततः शे-पीटकर जब यह फिर उन सद्गुरु व सच्छास्त्ररूपी यदइयोंको शरणमें आम तव वे भी और कोई उपाय न देख, फिर मर्यादाम्पो मेसो तलाके बीच में बेंककर ही इसके दये हुए शरीरको निकाल सकते हैं।
SR No.010777
Book TitleAtmavilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShraddha Sahitya Niketan
Publication Year
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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