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श्रात्मविलास 1
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जरूरत
होगया तो प्रकृतिदेवीके रचे हुए अन्य मोपानोंको आप विना fair वाधाके अपने-आप लॉबते चले जायेंगे, कोई शक्ति आपको ऊपर जानेसे रोक नहीं सकेगी। पानीका बहाव उल्टा चल पड़ा है यानी पर्वतकी ओर बहने लग पडा है, अर्थात् जीव का प्रवाह जो जड़तारून भोगोकी ओर चल पड़ा है, केवल इतनी ही है कि इसका प्रवाह अधर्मरूप जडतासे मोड़कर मांध कर दें धर्मरूप समुद्रकी ओर, फिर कोई चिन्ता नहीं । प्रवाह अपनी गति के साथ चलता हुआ ब्रह्मरूपी समुद्रमे आप जा मिलेगा, कोई शक्ति चाधा डालने में समर्थ नहीं है । स्वय भगवान् ने गीता पट्टा लिख दिया है - पार्थ नैवेद्द नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते ।
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न हि कन्यकृत्कचिदुर्गति तात गच्छति ॥ (४. ६.४८ )
अर्थ —हे पार्थ । न इम लोकमे ही उसका नाश हो सकता है और न परलोकमे ही, क्योंकि हे तात् । कल्याणका करनेवाला दुर्गतिको जा ही नही सकता
मरके भी उसको बलात्कारसे उसी ओर इसी प्रकार खिंचना पडेगा, जैसे पक्षी पेटीसे बँधा हुआ खींचा जाता है। यदि आपने किसी दरो (पौडी ) पर विना पॉव टिकाये छलॉग मारनेकी चेष्टा की तो आप नीचे गिरेंगे और चोट खा लेंगे, आखिर मरहम-पट्टीसे छुटकारा पानेके पीछे फिर भी आपको उस पौडी के ऊपर पॉच जमाकर ही ऊपर जाना होगा, इसके बिना छुटकारा है ही नहीं । यह कानून बड़ा ठोस है, जोकि उल्लङ्घन नहीं किया जा सकता । यह बात तो सबको ही स्वीकार करनी पड़ेगी कि बल घृतमें नहीं है, बल केवल उस भोजनमे है जिसको जठराग्नि पचा ले। यदि घृतमे ही वल माना जाय तो ज्वरपीडित रोगीको घृत पिला देखिये, घृतके सेवनसे वह बलिष्ट