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विषय
'स्वामी' पद और उसकी प्रसिद्धि ... ... ... भावी तीर्थकरत्व ... ... ... ... ....
भारतमें भावी तीर्थकर होनेके उल्लेख... ... समन्तभद्रकी महंक्ति, 'स्तुतिकार'रूपसे प्रसिद्धि और स्तुति
स्तोत्रोंके विषयमें उनकी विचारपरिणति तथा दृष्टि ... जीवनके दो खास उद्देश्य ... ...
शिवकोटि आचार्यकी भावना मनिजीवन और आपत्काल ... मुनिचर्याका कुछ सामान्य प्रदर्शन और भोजनविधिका, तद्विषयक
विचारोंके साथ, यत्किंचित् निरूपण ... मणुवकहल्लीमें तपश्चरण करते हुए, 'भस्मक' रोगकी उत्पत्ति, स्थिति
और तज्जन्य वेदनाके अवसर पर समन्तभद्रका धैर्यावलम्बन ७९ मुनिअवस्थामें रोगको निःप्रतीकार समझकर, 'सल्लेखना' व्रत धारण
करनेके लिये समंतभद्रके विचारोंका उत्थान और पतन ८४ गुरुसे सल्लेखनाव्रतकी प्रार्थना; गुरुका उसे अस्वीकार करते हुए
सम्बोधन और कुछ कालके लिये मुनिपद छोड़नेकी आज्ञा ८५ मुनिवेषको छोड़कर दूसरा कौनसा वेष (लिंग) धारण किया जाय,
इस विषयमें विचार और तदनुकूल प्रवृत्ति कांचीमें शिवकोटि राजाके पास पहुँचना और उसके 'भीमलिंग'
नामक शिवालयकी आश्चर्यघटना ... शिवकोटि राजाका अपने भाई शिवायनसहित जिनदीक्षाग्रहण,
भस्मक रोगकी शांति और आपत्कालकी समाप्ति श्रवणबेलगोलके शिलालेख दिसे उक्त घटनाका समर्थन ... शिवकोटि राजाके विषयमें ऐतिहासिक पर्यालोचन ... ९९ 'आराधनाकथाकोश' में दी हुई ब्रह्म नेमिदत्तकी समन्तभद्र
कथाका सारांश और उसपर विचार ... ... १०२ समन्तभद्रके शिष्य, और भस्मक व्याधिकी उत्पत्तिका समय ११३ बीवनचरित्रका उपसंहार ... ... ... ... ११