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गुणादिपरिचय।
३५ उन्हें दूसरे सम्प्रदायोंकी तरफसे किसी भी विरोधका सामना करना नहीं पड़ा। __ 'हिस्टरी आफू कनडीज लिटरेचर' के लेखक-कनड़ी साहित्यका इतिहास लिखनेवाले--मिस्टर एडवर्ड पी० राइस साहब समंतभद्रको एक तेज:पूर्ण प्रभावशाली वादी लिखते हैं और यह प्रकट करते हैं कि वे सारे भारतवर्षमें जैनधर्मका प्रचार करनेवाले एक महान् प्रचारक थे। साथ ही, यह भी सूचित करते हैं कि उन्होंने वादभेरी बजानेके उस दस्तूरसे पूरा लाभ उठाया है, जिसका उल्लेख पीछे एक फुटनोटमें किया गया है, और वे बड़ी शक्तिके साथ जैनधर्मके ' स्याद्वाद-सिद्धान्त' को पुष्ट करनेमें समर्थ हुए हैं ।
यहाँ तकके इस सब कथनसे स्वामी समंतभद्रके असाधारण गुणों, उनके प्रभाव और धर्मप्रचारके लिये उनके देशाटनका कितना ही हाल तो मालूम हो गया, परंतु अभी तक यह मालूम नहीं हो सका कि समंतभद्रके पास वह कौनसा मोहन-मंत्र था जिसकी वजहसे वे
___ He (Samantbhadra) was a brilliant disputant, and a great preacher of the Jain religion throughout India.........It was the custom in those days, alluded to by Få Hian ( 400 ) and Hiven Tsang ( 630 ) for a drum to be fixed in a public place in the city, and any learned man, wishing to propagate a doctrine or prove his erudition and skill in debate, would strike it by way of challenge of disputation,...Samantbhadra made full use of this custom, and powerfully maintained the Jain doctrine of Syadváda.