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गुणादिपरिचय।
छाया पड़ी हुई थी-आपका यश चूडामणिके तुल्य सर्वोपरि था और वह बादको भी बड़े बड़े विद्वानों तथा महान् आचार्योंके द्वारा शिरोधार्य किया गया है। जैसा कि, आजसे ग्यारह सौ वर्ष पहलेके विद्वान् , भगवजिनसेनाचार्यके निम्न वाक्यसे प्रकट है
कवीनां गमकानां च वादीनां वाग्मिनामपि । यशःसामन्तभद्रीयं मूर्ध्नि चूडामणीयते ॥ ४४ ॥
-आदिपुराण। भगवान् समंतभद्रके इन वादित्व और कवित्वादि गुणोंकी लोकमें कितनी धाक थी, विद्वानोंके हृदय पर इनका कितना सिक्का जमा हुआ था और वे वास्तवमें कितने अधिक महत्त्वको लिये हुए थे, इन सब बातोंका कुछ अनुभव करानेके लिये नीचे कुछ प्रमाणवाक्योंका उल्लेख किया जाता है
(१) यशोधरचरितके कर्ता और विक्रमकी ११ वीं शताब्दीके विद्वान् महाकवि वादिराजसूरि, समंतभद्रको ' उत्कृष्टकाव्य माणिक्योंका रोहण (पर्वत) सूचित करते हैं और साथ ही यह भावना करते हैं कि वे हमें सूक्तिरूपी रत्नोंके समूहको प्रदान करनेवाले हो
श्रीमत्समंतभद्रायाः काव्यमाणिक्यरोहणाः ।
सन्तु नः संततोत्कृष्टाः सूक्तिरत्नोत्करप्रदाः॥ (२) — ज्ञानार्णव ' ग्रंथके रचयिता योगी श्रीशुभचंद्राचार्य, समंतभद्रको 'कवीन्द्रभास्वान् ' विशेषणके साथ स्मरण करते हुए, लिखते हैं कि जहाँ आप जैसे कवीन्द्र सूर्योकी निर्मल सूक्तिरूपी
समझानेमें प्रवीण हो उसे 'गमक' कहते हैं । निश्चयात्मक प्रत्ययजनक और संशयछेदी भी उसीके नामान्तर हैं।