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प्रन्थ-परिचय।
देवागमकी स्वतंत्रतादि-विषयक जो नतीजा निकाला गया है उसका बहुत कुछ समर्थन होता है। __ कवि हस्तिमल्लादिकके उक्त पद्यसे यह भी मालूम नहीं होता कि जिस तत्त्वार्थसूत्र पर समन्तभद्रने गंधहस्ति नामका भाष्य लिखा है वह उमास्वातिका 'तत्त्वार्थसूत्र' अथवा 'तत्त्वार्थशास्त्र' है या कोई दूसरा तत्त्वार्थसूत्र । हो सकता है कि वह उमास्वातिका ही तत्त्वार्थसूत्र हो, परन्तु यह भी हो सकता है कि वह उससे भिन्न कोई दूसरा ही तत्त्वार्थसूत्र अथवा तत्त्वार्थशास्त्र हो, जिसकी रचना किसी दूसरे विद्वानाचार्यके द्वारा हुई हो; क्योंकि तत्त्वार्थसूत्रोंके रचयिता अकेले उमास्वाति ही नहीं हुए है-दूसरे आचार्य भी हुए हैं और न सूत्रका अर्थ केवल गद्यमय संक्षिप्त सूचनावाक्य या वाक्यसमूह ही है बल्कि वह 'शास्त्र' का पर्याय नाम भी है और पद्यात्मक शास्त्र भी उससे अभिप्रेत होते हैं । यथा--
कायस्थपद्मनाभेन रचितः पूर्वसूत्रतः। -यशोधरचरित्र । तथोद्दिष्टं मयात्रापि ज्ञात्वा श्रीजिनसूत्रतः।-भद्रबाहुचरित्र । भणियं पश्यणसारं पंचत्थियसंगहं सुत्तं । —पंचास्तिकाय । देवागमनसूत्रस्य श्रुत्या सद्दर्शनान्वितः।-वि० कौरव प्र० ।
एतच्च........मूलाराधनाटीकायां सुस्थितसूत्रे विस्तरतः समर्थितं द्रष्टव्यं ।-अनगारधर्मामृतटीका।
अतएव तत्त्वार्थसूत्रका अर्थ ' तत्त्वार्थविषयक शास्त्र' होता है और इसीसे उमास्वातिका तत्त्वार्थसूत्र 'तत्त्वार्थशास्त्र' और ' तत्त्वार्थाधिगममोक्षशास्त्र' कहलाता है । सिद्धान्तशास्त्र' और 'राद्धान्तसूत्र' भी
१ यह गाथाबद्ध 'भगवती आराधना' शास्त्रके एक अधिकारका नाम है।