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स्वामी समन्तमद्र। (६) विद्वानबोधकके उस पद्यमें कुन्दकुन्दका जो समय दिया है और जिसका ' श्रुतावतार ' आदि ग्रंथोंसे समर्थन होना भी ऊपर बतलाया गया है उसे भी असत्य कहना होगा; क्योंकि इस समय और उस समयमें करीब २०० वर्षका अन्तर पाया जाता है।
(७) इसके सिवाय, पट्टावलीमें कुन्दकुन्दसे पहले 'गुप्तिगुप्त' और 'जिनचन्द्र ' नामके जिन आचार्योंका उल्लेख है उनकी स्थितिको स्पष्ट करनेकी भी जरूरत होगी; क्योंकि श्रुतसागरसूरिने, बोधपाहुड़की टीकामें 'सीसेणय भद्रबाहुस्स' का अर्थ देते हुए, 'गुप्तिगुप्त' को दशपूर्वधारी — विशाखाचार्य'का नामान्तर बतलाया है• " भद्रबाहुशिष्येण अर्हदलि-गुप्तिगुप्तापरनामद्वयेन विशाखाचार्यनाम्ना दशपूर्वधारिणामेकादशानामाचार्याणा मध्ये प्रथमेन......"
और डाक्टर फ्लीटने उसका समीकरण चंद्रगुप्त (मौर्य) के साथ किया है * । इन दोनों उल्लेखोंसे 'गुप्तिगुप्त' भद्रबाहु श्रुतकेवलीके शिष्य ठहरते हैं परन्तु पट्टावलीमें उन्हें भद्रबाहु द्वितीयका शिष्य अथवा उत्तराधिकारी सूचित किया है । और शिलालेखोंमें 'गुप्तिगुप्त' नामका कोई उल्लेख ही नहीं मिलता । इसी तरहपर 'जिनचन्द्र'की स्थिति भी संदिग्ध है । जिनचंद्र कुन्दकुन्दके गुरु थे, ऐसा किसी भी समर्थ प्रमाणसे सिद्ध नहीं होता; शिलालेखोंमें कुन्दकुन्दके गुरुरूपसे जिनचंद्रका तो क्या, दूसरे भी किसी आचार्यका नाम नहीं मिलता। हाँ, कुछ शिलालेखोंमें इतना उल्लेख जरूर पाया जाता है कि कुन्दकुन्द भद्रबाहु श्रुतकेवलीके
* देखो 'साउथ इंडियन जैनिज्म, 'पृ. २१ ।