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स्वामी समन्तभद्र ।
___इस कथनमें मूलसंघका जो ' कुन्दकुन्दान्वय' विशेषण दिया गया है और उसी कुन्दकुन्दान्वयविशेषित मूलसंधका अर्हद्वलिद्वारा चार संघोंमें विभाजित होना लिखा है उससे, यद्यपि, यह ध्वनि निकलती है कि कुन्दकुन्दान्वय अर्हद्वलिसे पहले प्रतिष्ठित हो चुका था और इसलिये कुन्दकुन्द अर्हद्वलिसे पहले हुए हैं परंतु यह शिलालेख शक सं० १३२० का लिखा हुआ है जब कि कुन्दकुन्दान्वय बहुत प्रसिद्धिको प्राप्त था और मुनिजनादिक अपनेको कुन्दकुन्दान्वयी कहनेमें गर्व मानते थे। इसलिये यह भी हो सकता है कि वर्तमान कुन्दकुन्दान्वयको मूलसंघसे अभिन्न प्रकट करनेके लिये ही यह विशेषण लगाया गया हो और ऐतिहासिक दृष्टिसे उसका कोई सम्बंध न हो । अर्हद्वलि, जैसा कि ऊपर जाहिर किया जा चुका है पट्टावलियोंके अनुसार कुन्दकुन्दके समकालीन थे-वे कुन्दकुन्दसे प्रायः तीन वर्ष बाद तक ही और जीवित रहे हैं । ऐसी हालतमें उनके द्वारा कुन्दकुन्दान्वयके इस तरहपर विभाजित किये जानेकी संभावना कम पाई जाती है। इसके सिवाय, अहद्वलिद्वारा इस चतुर्विधसंघकी कल्पनाका विरोध श्रवणबेलगोलके निम्न शिलावाक्योंसे होता हैततः परं शास्त्रविदां मुनीनामग्रेसरोऽभूदकलंकसरिः। मिथ्यान्धकारस्थगिताखिलार्थाः प्रकाशिता यस्य वचोमयूखैः ॥
* प्राकृत पट्टावलीमें अहद्वलिका समय वीरनिवाणसे ५६५ वर्षके बाद प्रारंभ करके ५९३ तक दिया है, और नन्दिसंघकी दूसरी पट्टावलीसे मालूम होता है कि कुन्दकुन्द ५१ वर्ष १० महीने १० दिन तक आचार्य पद पर प्रतिष्ठित रहे जिससे उनका जीवनकाल वीरनि० सं० ५९० तक पाया जाता है और इस तरह पर अदिलिका कुन्दकुन्दसे कुल तीन वर्ष बाद तक जीवित रहना ठहरता है।