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स्वामी समंतभद्र। मर्कराका ताम्रपत्र है, जिसमें कुन्दकुन्दका नाम है, गुणचंद्राचार्यको कुन्दकुन्दके वंशमें होनेवाले प्रकट किया है और फिर ताम्रपत्रके समय तक उनकी पाँच पीढ़ियोंका उल्लेख किया है।
एलाचार्य। प्रो० ए० चक्रवर्तीने, पंचास्तिकापकी अपनी ऐतिहासिक प्रस्तावना' में, प्रो० हर्नलद्वारा संपादित नन्दिसंघकी पट्टावलियोंके आधार पर, कुन्दकुन्दको विक्रमकी पहली शताब्दीका विद्वान् माना है यह सूचित किया है कि वे वि० सं० ४९ में (ईसासे ८ वर्ष पहले) आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए, ४४ वर्षकी अवस्था में उन्हें आचार्य पद मिला, ५१ वर्ष १० महीने तक वे उस पदपर प्रतिष्ठित रहे और उनकी कुल आयु ९५ वर्ष १० महीने १५ दिनकी बतलाई है। साथ ही, यह प्रकट करते हुए कि कुन्दकुन्दका एक नाम 'एलाचार्य' भी था और तामिल भाषाके 'कुरल' काव्यकी बाबत कहा जाता है कि उसे 'एलाचार्य' ने रचकर अपने शिष्य थिरुवल्लुवरको दिया था जिसकी कृतिरूपसे वह प्रसिद्ध है और जिसने उसको मदुरासंघ (मदुराके कविसम्मेलन ) के सामने पेश किया था, यह सिद्ध करनेका यत्न किया है कि उक्त एलाचार्य और कुन्दकुन्द दोनों एक ही व्यक्ति थे और इसलिये 'कुरल' का समय भी ईसाकी पहली शताब्दी ठहरता है * । परंतु 'कुरल' का समय ईसाकी पहली शताब्दी ठहरो या कुछ और, और वह एलाचार्यका बनाया हुआ हो या न हो, हमें इस चर्चामें जानेकी जरूरत नहीं है, क्योंकि उसके आधारपर कुन्दकुन्दका
* This identification of E'lacharya the author of Kural with Elâcharya or Kund Kund would place the Tamil work in the 1st century of the Christian era.