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समय-निर्णय ।
१५५ उस रहस्यके उद्घाटित होनेपर जैनशास्त्रोंकी बहुतसी लम्बी चौड़ी कालगणनापर अच्छा प्रकाश पड़ सकता है, इसमें जरा भी संदेह नहीं है।
रहा चौथा मत, वह वही है जो आजकल प्रचलित है और जिसके अनुसार इस समय वीरनिर्वाण संवत् २४५१ माना जाता है। त्रिलोकसारकी निम्न गाथामें भी इसी मतका उल्लेख है
पणछस्सयवस्सं पणमासजुदं गमिय वीरणिव्वुझ्दो।
सगराजो तो कक्की चदुनवतियमहियसगमासं ॥ ८५० ॥ इस मतके विषयमें यद्यपि, यह बात अभी निश्चयपूर्वक नहीं कही जा सकती कि इसके अनुसार वीरनिर्वाणसे ६०५ वर्ष ५ महीने बाद शक राजाका देह-जन्म माना गया है या राज्यजन्म अथवा उसके राज्यकालकी समाप्ति ही उससे अभिप्रेत है; फिर भी इतना जरूर कहा जा सकता है कि यदि शक राजाका राज्यकाल वीरनिर्वाणसे ६०५ वर्ष बाद प्रारंभ हुआ है तो राजा विक्रमका राज्यकाल भी वीरनिर्वाणसे ४७० वर्ष बाद प्रारंभ हुआ है-४८८ वर्ष बाद नहीं;-क्योंकि दोनोंके राज्यकालमें अथवा सम्बतोंमें १३५ वर्षका अन्तर प्रसिद्ध है, जो ४८८ वर्ष बाद विक्रमराज्यका प्रारंभ होना मानने पर नहीं बन सकता। और इस लिये प्राकृत पट्टावली आदिमें जो वीरनिर्वाणसे ४७० वर्ष वाद विक्रमका जन्म होना लिखा है वह उसका राजारूपसे जन्म होना हो सकता है-देहरूपसे नहीं । देहरूपसे जन्म होना तभी समझा जा सकता है जब कि शक संवत्का प्रारंभ भी शक राजाके जन्मसे माना गया हो।
१ इस गाथामें वीरनिर्वाणसे ६०५ वर्ष ५ महीने बाद शक राजाका और शकसे ३९४ वर्ष ७ महीने बाद कल्किका होना बतलाया गया है।