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________________ समय-निर्णय । तिने अपने दूसरे ग्रंथ 'धर्मपरीक्षा की समाप्तिका समय इस प्रकार दिया है संवत्सराणां विगते सहने सससतौ विक्रमपार्थिवस्य । इदं निषिध्यान्यमतं समाप्तं जैनेन्द्रधर्मामितयुक्तिशास्त्रं ॥ इस पद्यमें, यद्यपि, विक्रमसंवत् १०७० में ग्रंथकी समाप्तिका उल्लेख है और उसे स्वर्गारोहण अथवा मृत्युका संवत् ऐसा कुछ नाम नहीं दिया; फिर भी इस पद्यको पहले पद्यकी रोशनीमें पढ़नेसे इस विषयमें कोई संदेह नहीं रहता कि अमितगति आचार्यने प्रचलित विक्रम संवत्का ही अपने ग्रंथोंमें प्रयोग किया है और वे उसे विक्रमकी मृत्युका संवत् मानते थे---संवत्के साथ विक्रमकी मृत्युका उल्लेख किया जाना अथवा न किया जाना एक ही बात थी, उससे कोई भेद नहीं पड़ता था। पहले पद्यमें मुंजके राज्यकालका उल्लेख इस विषयका और भी खास तौरसे समर्थक है; क्योंकि इतिहाससे प्रचलित वि० सं० १०५० में मुंजका राज्यासीन होना पाया जाता है। और इस लिये यह नहीं कहा जा सकता कि अमितगतिने प्रचलित विक्रम संवत्से भिन्न किसी दूसरे ही विक्रम संवतका उल्लेख अपने उक्त पद्योंमें किया है । ऐसा कहने पर मृत्यु सं० १०५० के समय जन्मसं० ११३० अथवा राज्यसं० १११२ का प्रचलित होना ठहरता है और उस वक्त तक मुंजके जीवित रहनेका इतिहासमें कोई प्रमाण नहीं मिलता। मुंजके उत्तराधिकारी राजा भोजका भी वि० सं० १११२ से पूर्व ही देहावसान होना पाया जाता है। ___ यद्यपि, विक्रमकी मृत्युके बाद प्रजाके द्वारा उसका मृत्युसंवत् प्रचलित किये जानेकी बात जीको कुछ कम लगती है, और यह हो सकता है कि अमितगति आदिको उसे मृत्युसंवत् समझनेमें कुछ
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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