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समय-निर्णय ।
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आचार्योक पट्टारोहणके जो सम्बत् दिये हैं उनकी गणना विक्रमके राज्याभिषेक समयसे ही की गई है; अन्यथा, उक्त पट्टावलीमें भद्रबाहु द्वितीयके आचार्य पद पर प्रतिष्ठित होनेका जो समय वि० सं० ४ दिया है वह नंदिसंघकी दूसरी प्राकृतपट्टावलीके विरुद्ध पड़ता है; क्योंकि उस पट्टावलीमें भद्रबाहु (द्वितीय) का वीरनिर्वाणसे ४९२ वर्ष बाद होनेका उल्लेख किया है और यह समय विक्रमके जन्मसे २२ वर्ष बाद बैठता है। पट्टावलीमें सं० २२ न देकर ४ का दिया जाना इस बातको साफ बतलाता है कि वह विक्रमके राज्यकालका संवत् है और उसके जन्मसे १८ वर्षके बाद प्रारंभ हुआ है । अस्तु; यदि प्रचलित विक्रम संवत्को विक्रमके जन्मका संवत् न मानकर राज्यका संवत् मानना ही ठीक हो और साथ ही यह भी माना जाय कि विक्रमका जन्म वीरनिर्वाणसे ४७० वर्ष बाद हुआ है तो आजकल जो वीरनिर्वाण सं० २४५१ बीत रहा है उसे २४७० मानना पड़ेगा; उमास्वातिका समय तब, उक्त पद्यके आधार पर, वि० सं० २८१ या २८१ तक ठहरेगा, और तदनुसार समन्तभद्रका समय भी १८ वर्ष और पहले (ई० सन् २६५ या २६५ तकके करीब) हो जायगा।
विक्रमसंवत्के सम्बंधमें एक मत और भी है और वह प्रचलित संवत्को विक्रमकी मृत्युका संवत् प्रतिपादन करता है । इस मतके प्रधान पोषक हमारे मित्र पं० नाथूरामजी प्रेमी हैं । आपने, 'दर्शनसार' की विवेचनामें, अपने इस मतका बहुत स्पष्ट शब्दोंमें उल्लेख किया है और साथ ही कुछ प्रमाणाक्योंके द्वारा उसे पुष्ट करनेका भी यत्न
* देखो 'जैनसिवान्तभाकर ' किरण ४ थी, पृष्ठ ७८ ।