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समय-निर्णय ।
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करकी रिपोर्टमें समन्तभद्रका समय जो शक सं० ६० (वि० सं० १९५ ) के करीब बतलाया गया है अथवा आम तौर पर विक्रमको दूसरी शताब्दी माना जाता है उसे भी ठीक कहा जा सकता है।
(ग) 'विद्वज्जनबोधक' में निम्न श्लोकको उमास्वाति (उमास्वामी) के समयवर्णनका प्रसिद्ध श्लोक लिखा है और उसके द्वारा यह सूचित किया है कि उमास्वाति आचार्य वीरनिर्वाणसे ७७० वर्ष बाद हुए हैं अथवा ७७० वर्ष तक उनके समयकी मर्यादा है
वर्षे सप्तशते चैव सप्तत्या च विस्मृतौ ।
उमास्वामिमुनिर्जातः कुन्दकुन्दस्तथैव च ॥ यदि इस समय जो वीरनिर्वाणसंवत् (२४५१) प्रचलित है उसे ठीक मान लिया जाय तो इस श्लोकके आधार पर उमास्वातिका समय वि० सं० ३०० या ३०० तक होता है और वह पट्टावलीके समयसे डेढ़सौ वर्षसे भी अधिक पीछे पड़ता है। इस समयको ठीक मान लेने पर समन्तभद्र वि० सं० ३४० ( ई० सन् २८३ ) या ३४० तकके करीबके विद्वान् ठहरते हैं।
वीरनिर्वाण, विक्रम और शक संवत् । __परन्तु वीरनिर्वाण संवत्का अभीतक कोई ठीक निश्चय नहीं हुआ। इस संवत्से विक्रम संवत्का जो ४७० वर्ष (४६९ वर्ष ५ महीने ) बाद प्रचलित होना माना जाता है उसकी बाबत कुछ विद्वानोंका कहना है कि वह ठीक नहीं है, क्योंकि वीरनिर्वाणसे
१ हस्तलिखित संस्कृत ग्रंथों के अनुसंधान-विषयक सन् १८८३-८४ की
२ इस पिछले अर्थकी संभावना अधिक प्रतीत होती है । कुन्दकुन्दका बादमें उल्लेख भी उसे पुष्ट करता है। .३ मालूम नहीं यह पद्य विद्वज्जनबोधकमें कहाँसे उद्धृत किया गया है और कौनसे ग्रंथका है।
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