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स्वामी समन्तभद्र।
बेलगोलके ' मलिषेणप्रशस्ति' नामक शिलालेख (नं० ५४६७) में, समन्तभद्रका 'सिंहनंदि' से पहले स्मरण किया जाना है । आपकी रायमें यह पूर्व स्मरण इस बातके लिये अत्यंत स्वाभाविक अनुमान है कि समंतभद्र सिंहनदिसे अधिक अथवा अल्प समय पहले हुए हैं। ये सिंहनंदि मुनि गंगराज्य (गंगवाड़ि) की स्थापनामें विशेषरूपसे कारणीभूत अथवा सहायक थे, गंगवंशके प्रथम राजा कोगुणिवर्माके गुरु थे, और इस लिये कोंगुदेशराजाकल् (तामिल कानिकल ) आदिसे कोंगुणिवर्माका जो समय ईसाकी दूसरी शताब्दीका अन्तिम भाग ( A. D. 188 ) पाया जाता है वही सिंहनंदिका अस्तित्व-समय है। सिंहनंदिसे पहले स्मरण किये जानेके कारण समं- : तभद्र सिंहनंदिसे पहले हए हैं, और इसी लिये उनका अस्तित्वकाल ईसाकी पहली या दूसरी शताब्दि अनुमान किया गया है। यही सब राइस साहबके अनुमानका सारांश है । *
१ राइस साहबको वादमें कोंगुणिवर्माका एक शिलालेख मिला है, जो शक संवत् २५ ( A. D. 103) का लिखा हुआ है और जिसे उन्होंने, सन् १८९४ में, नंजनगूड ताल्लुके (मैसूर) के शिलालेखोंमें नं. ११० पर प्रका. शित कराया है ( E.C. III)। उससे कोंगुणिवर्माका स्पष्ट समय ईसाकी दूसरो शताब्दीका प्रारंभिक अथवा पूर्वभाग पाया जाता है, और इस लिये सन् १८८९ में श्रवणबेल्गोलके शिलालेखोंकी उक पुस्तकको प्रकाशित कराते हुए जो दूसरे आधारोंपर आपने यह दूसरी शताब्दिका अन्तिम भाग समय माना था उसे ठीक न समझना चाहिये। ** इस सम्बधमें राइस साहबके कुछ वाक्य इस प्रकार हैं
Supposing him ( समन्तभद्र ) to have preceded at a greater or less distance the guru (सिंहनन्दि) next mentioned, and that is the most natural inference, he