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________________ घामचर्य परिकरणम् जो माय: परमप्पा णाणमयं रागभावरहियं च । सो गच्छइ सिवलोयं उज्जोयंतो दसदिसाओ ॥ २६ ॥ जो चरइ बंभचरणं अणेगगुणसणि आरुहइ साहू । लो पावड मिद्धमुहं जीरायो जो इवह विमये ॥३०॥ आगहणा य तिविहा णाणं सणचरित्तठाणंगे। नं निय मयलो आया आराह मिलमुहकन्ने ॥ ३१ ॥ जो रयणत्तयगइयो णियदयं मुग्यकारण भणिय । अन्नं जे परदव्या मुहाऽहं बंधहंउ ति ॥ ३२॥ मुहटव्यणं पुन्नं असुह पावंति मुगई जो गगी। परिणामोऽननगयो दुक्राफ्पयकारणं समए ॥३३॥ जो मुहणाणरूचं मंजमनवमाधिभावए अप्पा । मोऽसमम्वकारणकम्मपये मारवय मुगड ॥३४॥ जो परदन गिन्हा अवराही होइ चम्प लोये। परतन्ध जो न गिनाइ नो मार न बंधए कोड।। ३५॥ अप्पाउ चुस्साए सो घमाइ मत्तअट्टकम्मेति । अप्पधम्माओ न यो फम्मेति अबंधगो 31॥ जो अप्पाणं जाण: पुगलकम्माओ भावओ अन्नं। मदं जाणग भावं सो मलं जाणा मध ॥३५॥ जो ग्यणत्तयधम्मो मां पर आया गति सबन्न। नं मार परगप पमायरहियण महकरने ।। ३८॥ नेमण ने पिड णाणं जण गुणा जीवागं। गणिणि संधि रपपः नं पर भगः सम्यन्नू ।। १ ।।
SR No.010775
Book TitleManidhari Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShankarraj Shubhaidan Nahta
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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