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________________ चामचर्य परिकरणम् जह घटु महराभरियो चंदणकुसुमेहि पूयो उवरि । स कहं हवा विमुद्धो तह अमुहसरीरगं जाण ॥८॥ जह अस्थि भावतो मुणहो गल्लहि महिरनिम्सरई । तं णियमलेण रज्जह तह मूढो रंजए विमग ॥६॥ पुन्नुढयविसयसुकावं भुजतो जीउ बंध पाव । पुनखाएणं खीयइ सो णाणी जो परिचयह ॥ १० ॥ जो परदेहविरना णियदेहेण य कोइ अणुरायं । अप्पसहाये सुरयं सो गीगयो एवइ साह ॥११॥ इयं असासई बुंदी तेमि पमं न धारये । भाण्ड एगमप्पाणं जे पाय धुवं पयं ॥ १२॥ असुई असामई जो पगया चय अमुहबंधकारिणा । रु: दिव्यमहालच्ची सा एगा परदु वरंगणा ॥ १३ ॥ सुरभुइ मामई जा मोहागिणि णिगलो य सिरिवसः। पुणरवि न देठ गमणं अहा भागिणी सुजमा ।। १५ ॥ तम्मिय जराण गच्च अमियरसं हरपाणिचंदाभा। सारमझुसिद्धिरमणी अणताकारिणी लन्द्री ॥१५॥ जा चयः अण उत्थी जिम्मलरयणहि मजुओ गमः । आयरड तया लछो णिग्यमा, दंड मा 'भा ॥१६॥ जो हया पीयरागी फेवलमहरयणभूमियमरी । मो ग्गर सिन्दिरमणी नय अग्नी जिनवगे भणः ॥१७॥ परं विमुद्धि माराय नं पया मिहिननीयमंदिरं । भुजा अर्गननुपर मुह मिदं गााहिलं ॥१८॥
SR No.010775
Book TitleManidhari Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShankarraj Shubhaidan Nahta
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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