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________________ व्यवस्था शिक्षा कुलम् अर्थ-जो माधमियों के द्रव्य को ले लेता है और अपने घर में धन के होने पर भी देना नहीं चाहता है उसको भी क्या दर्शन मम्यस्त हो सकता है? अर्थात् नहीं। सयं च लिहियं दिन्नं जाणतो विहु जंपइ । मया न लिहियं दिन्नं नोजाणामिचि मग्गिओ ।।६२।। म्वयं च लिखितं दत्तं जानपि खलु जल्पति। मया न लिखितं दत्तं नो जानामीति मागितः।। ६२॥ अर्थ-गुदने लिया है साधी ने दिया है, फिर भी जो मागने पर जागता हुआ भी कहता है, न मैंने लिया है न तुमने दिया है, न में जानता ही है। पच्चक्खं सो मुसाबाई लोए वि अपभावणं । कुणतो छिंदइ मूलं सो दंगण महद्द मं ।। ६३ ॥ प्रत्यक्षं स मृपावादी लोके ऽप्यप्रभावनाम् । पुर्वश्छेदयति मूलं स दर्शनमहदहमस्य ।। ६३ ।। अर्थ-यह प्रत्यक्ष में मृषाभाषी लोक में अप्रगावना निदा को करता हुआ सम्यक रूप बड़े भारो पेट की जर को काटता है। समं साहम्मिएणा वि. राउलं दडलं करे। हीलयं धरणं जुद्धं, सो बिहु नासइ दंसणं ।। ६४ ॥ ४
SR No.010775
Book TitleManidhari Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShankarraj Shubhaidan Nahta
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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