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________________ व्यवम्या-शिक्षा-कुलकम् अर्थ-यावजीवन गुरु की रक्षा परिस्थिति के अनुकूल शुद्ध अशुद्ध तरीके से भी करनी ही चाहिये। बैल को गारह वर्ष पयंत और भिक्षुपाधु की अठारह मास तक। असिवे ओमोयरिए राय पउट्ट भए य गेलन्ने । एमाइकारणेहिं आहाकम्माइजयणाए ॥ ५७ ॥ अशिवेऽवमोदरिके (दुर्भिक्षे) राजप्रद्विष्टे भये च ग्लान्ये । इत्यादिकारण-राधाकम्मादि यतनया ॥५७ ॥ अर्थ-आशिय और तुपाल के उपस्थित होने पर. राजा के प्रति हो जाने पर, भग की अवस्था में, बीमारी को अवस्था ग, त्यादि कारणों में यतना से आधाकर्म आदि का सेवन होता है। जओ सिद्धते वर्गकाले चिय जयणाए मच्छर रहियाण उज्जगताणं। जणजत्ता रहियाणं, होइ जहनं जइण सया ॥ ५८ ।। यतः सिद्धान्त प्रोक्तम्काल एव यतनया गात्सर्यरहितानामुगमवताम् । जनयात्रारहिताना भवति यतित्वं यतीना सदा ।। २८॥ असम में फरमाया frमा गाा रहिन, सयम में उपन शोल, लोकगाना ने साल माधुओ को पाल की याना हरी गतिएगा। अर्धात् गगग फे जाण साधु को साधु है।
SR No.010775
Book TitleManidhari Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShankarraj Shubhaidan Nahta
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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