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________________ मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि आपके शासनकाल में रचित खरतरगच्छ का विस्तृत साहित्य उपलब्ध नहीं है। अद्यावधि हमारे अवलोकन मे केवल एक ही ग्रन्थ "ब्रह्मचर्य प्रकरण" गा० ४३ का आया है जो कि श्रावक कपूरमल्ल की कृति है। यह ग्रन्थ छोटा सा एवं अप्रकाशित होने के कारण इस पुस्तक के परिशिष्ट में दे दिया गया है। उपसंहार महात्मा भर्तृहरि की यह उक्ति "गुणा पूजास्थानं गुणिपु न च लिङ्गन च वयः” सोलहो आने सत्य है। मणिवारीजी की दीक्षा कंवल छः वर्ष और आचार्य पद भी ८ वर्प जैमी लघवय मे योगीन्द्र युगप्रधान परमपितामह श्रीजिनदत्तरिजी के द्वारा होना बहुत ही विग्मयकारक एव आपकी अद्वितीय प्रतिभा का परिचायक है। चैत्यवासी पद्मचन्द्राचार्य जैसे वय एवं ज्ञानवृद्ध आचार्य को शास्त्रार्थ में परारत करना और दिल्लीश्वर महाराज मदनपाल का चमत्कृत हो अनन्य भक्त बनना आपकी विशिष्ट जीवनी के उत्तम प्रतीक है। ग्वेद है कि आपके जीवनचरित्र को श्रीजिनपालोपाध्याय ने बहुत ही संक्षिप्त रूप से मंकलित किया है जिसके कारण हमे जापक मन्चे व्यक्तित्व को पहचानने में कठिनता होती है पर हम श्रीजिनपालोपाध्याय को इस सद्प्रयन के लिए गाधुवाद दिये बिना नहीं रह सकते, क्योंकि आज हमे जो कुछ भी वास्तविक इतिहत्त प्राप्त हुआ है कल उन्हीं की कृपा का सुफल है।
SR No.010775
Book TitleManidhari Jinchandrasuri
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShankarraj Shubhaidan Nahta
Publication Year
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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