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प्रवेशिका
अन्तिम जैन तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी एवं महात्मा बुद्ध प्रायः समकालीन थे। हृदयहीनता एवं दम्भ का विरोध कर इन महान् आत्माओं ने संसार को कारुण्य का उपदेश दिया था। परन्तु बौद्ध धर्म अव भारतवर्ष से विलीन हो चुका है। उसके विहार एवं मठ अव 'बुद्धं शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि' 'सघं शरणं गच्छामि' के वाक्यों से प्रतिध्वनित नहीं होते। जिस धर्म का चक्रवती महाराज अशोक एवं हर्षवर्धन ने प्रसार किया था उसके भारतीय अनुयायी अव अंगुलियों पर गिने जा सकते है। इस महान परिवर्तन का कारण क्या धार्मिक अत्याचार था ? क्या पुष्यमित्र और शशाक की तलवारों ने इस धर्म का नाश कर दिया ? भारतीय इतिहास का पृष्ठ-पृष्ठ चिल्ला कर कहेगा कि नहीं। बौद्ध धर्म पर अन्त तक भारतीय राजाओं की कृपा रही, अन्त तक उसके लिये विहारों
और संघारामों की मृष्टि होती रही। उसे किसी ने नष्ट नहीं किया, वह स्वयं ही नष्ट हो गया। वह विलासिता, शिथिलता, एवं उत्साहहीनता के बोझ से दब गया और फिर न उठ सका। सहजयान, वज्रयान, कुलयान आदि की सृष्टि कर वह केवल