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• अय श्री संघपट्टका
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तर्क शर्करा रसस्यंदिन्या वाचा तया जगवान ने तबादं व्यु. त्पादयति यथा विधांसः शेषदर्शनत्यागेन तत्रैव रज्यत इत्यर्थः
अर्थः केम जे तेमज प्रमाण पणे सहित ने ए हेतु माटे पण अन्यदर्शनीनी पेठे सत् अथवा असत् अथवा नित्य अथवा अनित्य इत्यादि एकज स्वरूप वस्तुहुँ एम एकांतरूपपणुं जैन दर्शनमां नथी केमजे विचार करता तेनुं प्रमाणपणुं नयी थतुं. ते माटे अनेक रूप वस्तुना वादने विषे अनुरागने उत्पन्न करनार एटले अनेकांत वादने विषे प्रीति उत्पन्न करनार तकरूपी साकरना रसने करनारी वाणीवके लगवान् अनेकांत वादने व्युत्पन्न करे ले जे प्रकारे विधान पुरुषो समस्त दर्शननो त्याग करीने ते अनेकांत वादने विषेज राजो थाय ने एटलो अर्थ ॥
टोका:-चक्रमिदंचक्रबंधःमाघसमं याश्या वर्णन्यासपरिपाट्या माधकाव्यस्थचक्र तथा माघकाव्यमिदंशिशुपालवध इत्येवं रूपो नाम निबंधः प्रादुर्भवति ।।हापि तादृश्ये वेति माघसमतीर्थः॥
अर्थः-आ चक्र बंध काव्य बे. ते माघ काव्यना जेतुं , जे प्रकारे अक्षर स्थापन करवानी परिपाटी माघकाव्यना चक्रवंधि श्लोकमां ते प्रकारे अही पण . शिशुपाल वध नामनो जे ग्रंथ
तेने माघकाव्य कहे , तेना जेवो चक्रबंध माटे माघ समान एवो अर्थ थयो।