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मय श्री संयपट्टका
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बते तथा अमेज धर्मनिष्ट बीए ए प्रकारनी बात सर्वत्र प्रसिद्ध करे उते तथा मत्सर सहित अने अनिष् करवामां तत्पर तथा अधम तथा पाप करतां पण जेने शंका थतो नथो ए प्रकार ने मन जेनु एवो लोक थये बते।
टीका:-तस्मिन् क्रिष्टे धार्मिकान् प्रति कुराध्यवसाये एवं विधे संप्रति जूयसि प्रजूते जनेलोके सति अथ यद्येवं विधोनयानलोकः संप्रति ततः किमायात मपरचैत्यविधापनस्येत्यतश्राइ ॥ ताक्लोकपरिग्रहेण प्रागुक्तविशेषण विशिष्टजनाधीनत्वेन निविनयोगरागग्रहेण तीवगुणवन्मात्सर्योदग्रस्वमतानुरागाजिनिवेशेन प्रस्ता वशीकृता ये एतद्गुरवः प्रागनिहत जनाचार्यास्तत्सात्कृतेषु ॥
अर्थः--तथा धर्म निष्ट पुरुषो उपर क्रूर अध्यवसाय जेने के ए प्रकारना श्रा कालमा घणा लोक थये ते नवं विधि चैत्य कराव्यु एम श्रागळ संबंध जावो. आशंका करी उत्तर कहे . जे हवे ए प्रकारना घणा लोक श्रा काळमां थया तेथी वीजु चैत्य कराव्यामां शुं कारण प्राप्त थयुं ? तो तेनो उत्तर कहे ते. जे पूर्वे विशेषण कह्यां तेणे सहित एवा लोक साथे पराधीनपणुं थयं तेथे करीने तथा जे आकरो गुणवान साथे मत्सर तेणे करीने मोटो पोताना मतनो अनुराग थयो तेणे करीने वश थयेखा एवा पूर्वे कहेला सोकोना श्राचार्य तेमने सर्व चैस्य अर्पण करे ठते नई चैत्य कराव्यु एम संबंध ठ.