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________________ - अथ श्री संघपट्टक rra MANMAMMAMAN - तेनी सिकिने अर्थे में केम जे ते विना यतिने चैत्यवास संबंधी स्वतंत्र कापणुं न थाय तथा ते चैत्यनो जे चिंता एटले साल संजाल राखवी तेनुं करवापणुं इत्यादिक सिझन थइ शके माटे एम जो तमे कहेता होतो ते न कहेवू केम जे विकल्प सहन नही थाय एवा ए प्रकार सुविहितनुं वचन . टीका:-तथाहितदन्युपगममात्रंप्रमाणमूल मप्रमाणमूलं वास्यात् ॥ प्रमाणमूलं चन्मगदावेवेत्यवधारणव्याघातः ॥ तदन्युपगममात्रस्य प्रमाणमूलत्वे चैत्यवासस्यापितन्मूलत्वेन प्रमाणसिकः ॥ अर्थः-तेज कही देखामे जे ते मठवासनुं जे पावन ते प्रमाण मूल के अप्रमाण मूल बे ने जो प्रमाण मूल ले तो भगदी एव' ए जगाए एवकारशब्दनो निरधारणवाचक जे अर्थ जे तेनो व्याघात थशे एटले नहि घटे ने ते मउवासना अंगिकार करवातुं प्र. माणमूलपणुं जो होय तो चैत्यवास, पण तेना मूलपणे करीने प्रमाण सिद्ध थाय पण तेतो नथी. टीका:--अप्रमाणमूलं चेत्यज्यतां तहि चैत्यवासान्निनिवेशः ।। समूलमुन्मूल्यतांतत्समर्थनाय विरचितानि वादस्थला. नि ॥ समुत्सृज्यतामप्रमाणिक चैत्यवासाच्युरगममूलवेना प्रा. माएयान्महासावद्यशय्यारूपमठवासाच्युपगमः ॥ अन्युपेयतां चाधाकर्मादिसकल दोपरहितपरग्रहवासन सौविहित्यमिति ॥ अर्थः- जो चैत्यवास अममाणमूल वे तो चैत्यवासनो
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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