________________
(३२६)
* अथ श्री संघाहकार
एवो ए धूर्त पुरुष पोतानो हितकारी माने ले ने तेने कोश्क यथार्थ वांत कहे जे जे आतो तारं जुएं करनार ने एनो संग त्याग कर. एम यथार्थ कहेनार मळे ले तोपण ते योग चूर्णादिकना प्रजावधी त धूतं पुरुष वचन त्याग करी शकतो नथी तेम था श्रावक लोक एम लिंगधारीना कुमार्गरुपी वशीकरणथकी बुटी शकता नथी इत्यादि पूर्वनी पेठे संबंध.करवो.
": 'टीका:-किं दैवेन प्रतिकूलविधिनोपहताः सद्बुद्धिबंश प्रापिताः ॥ तेहि विधिवशेन विपर्यस्तमतित्वादकृत्यमपि स्तेयादिकं कृत्यतया मन्वाना स्तत्वं प्रतिपाद्यमानापि वर्महिम्ना ततो न निवर्तते तथैतेपि किं अंगेति पार्श्ववया॑मंत्रणं किं गिताः मंत्रादिप्रयोगेण स्वायत्तीकृताः॥ . अर्थः-वळी प्रतिकूल देवे एटले विपरीत अदृष्ट श्रावक लोकनी सारी बुद्धिनो नाश कयों ले के शुं कमजे जेनु प्रतिकूल दैव बेतेनी विपरीत मति ने ए हेतु माटे चोरी प्रमुख न करवानुं कापने पण करवापणे माने . तेने कोश्क कहेनार मळे जे जे श्रा काम करवा योग्य नथी एम यथार्थ कहे तोपण उष्ट अष्टना महिमाये करीने ते चौर्यादिक कर्मथी निवृत्ति नथी पामता. तेम ए श्रावक पण .न, करवान करे डे माटे एमर्नु अदृष्ट वांकु थयुं के शु! अंग एप्र.
कारनुं पासे रहेलाने संवोधन आपे ले जे तमो ठगाया गे के शुं! एटले हे श्रावक लोको ए लिंगधारीनए मंत्रादिप्रयोगे करीने तमने बगी श्रीधा बे के शं! .